Book Title: Prashna Chintamani
Author(s): Virvijay,
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
प्रश्न / विकुर्वितान्येव पुष्पाणि नवंति, जलस्थलजानामपि कुसुमानां तत्र संभवात्, यतः - विंटठाईसुर चिंतानिजलथलयं दिवकुसुमनिहारिपयरंति सम तेणं दसवन्नकुसुमवासंति सिद्धांतवचनात, एवं श्रुत्वा परे सहृदयंमन्या उत्तरयंति यद्यत्र व्रतिनस्तिष्टति न तब देशे देवाः पुष्पाणि किरतीति एतदप्युतराजासं, न खलु तपोधनैः कष्टीनृतावस्थामालंव्य तत्रैव देशेऽवश्यं स्थातव्यं, प्रयोजने तव गमनादेरपि संगवादिति तस्मान्निखिलगीतार्थसंमतमिदमुत्तरमत्र दीयते, यथैकयोजनमावायां समवसरणधरणावपरिमितसुरासुरादिलोकसंमर्देऽपि न परमाबाधा काचित्तथा तेषामाजानुप्रमा रादिप्तानाममंदमकरंदसंपत्संपादितानंदमंदारमुचकुंद कुमुदकमलसुकुमालमालती विकचविकचिलप्रमुखकुसुमसमूहानामप्युपरिसंचरणौ स्थातरि च मुनिनिकरे विविधजननिचये च न काचिदावाधा, प्रत्युत सुधारससिच्यमानानामिव बहुतरः समुल्लास स्तेषामापद्यते ऽचिंतनीयनिरुपमतीर्थकर प्रजावोज्जूंनमाणप्रसादादेवेति प्रवचनसारोकारे एकोनचत्वारिंशत्तमहारवृत्तौ १०. प्र – गृहवासस्था जिनेंद्रा जैनप्रतिमां पूजयंति न वेति ? उ-ज्ञानवयान्विता जिनेंद्रा गृहवासे स्थिताः पुष्पधूपदीपाद्यः पूजयंति - विवानि साकृतिकत्वात्, यदाहुः श्रीशत्रुंजयमाहात्म्येऽष्टमे सर्गे - स्वामी ततश्च सुनातो | दि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 164