Book Title: Pranav Gita Part 01
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya
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________________ नवमोऽयायः श्रीभगवानुवाच / इदन्तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे / ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसे शुभात् // 1 // अन्वयः। श्रीभगगवान् उवाच / इदं तु गुह्यतम विज्ञानसहितं ज्ञानं अनसूयवे ते प्रवक्ष्यामि, यत् ज्ञात्वा अशुभात् मोक्ष्यसे // 1 // अनुवाद। श्रीभगवान् कहते हैं, तुम असूया बिहीन हुए हो, इसलिये तुमको यह परम गुह्य विज्ञान-सहित ज्ञान कहता हूँ, जिसको जाननेसे तुम अशुभसे मुक्ति लाभ करोगे // 1 // व्याख्या। अब साधक ! तुम देखो, ८म अः में प्रथम दीक्षाके उपदेशसे प्रारम्भ करके शेष पर्यन्त चल कर किस प्रकार करके शरीर त्याग करके परम स्थान प्राप्त करने होता है, उसका उपदेश किया हुआ है; अब जीवन्मुक्ति कैसा है अर्थात् शरीर धारण करके पंक (कीचड़) के भीतर रहनेवाले मछली सरीखे, प्रकृतिके भीतर रह करके भी किस प्रकारसे निर्लिप्त रहने होता है, उसीका उपदेश किया जाता है। "इदन्तु ते"-इत्यादि--यह उपदेश अत्यन्त गुप्त है; भाषामें यह मिल नहीं सकता। तुम (गोता लगाकर जलके भीतर पंठने सदृश इसमें ) डूबने सिखे हो इसलिये अधिकारी हुए हो। अतएव विज्ञान के साथ ज्ञानको समझ लो। ज्ञान है "मैं" का बौधन, और विज्ञान है मेरा' कहने में जो कुछ आता है, उन सबका वा प्रकृतिका बोधन / ज्ञान =ज+ब+आ+न; 'ज' =जायमान अर्थात् उत्पत्ति-स्थिति-नाश विशिष्ट जो कुछ है। 'ब'-गन्धानु अर्थात् शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गन्ध जिसमें है। 'श्रा' कारका अर्थ आसक्ति है / 'न' कारका अर्थ नास्ति

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