Book Title: Pranav Gita Part 01
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

Previous | Next

Page 444
________________ 405 नक्म अब्बाय है, वही महापुरुष समझ सकते हैं कि, गुरूवाक्यमें अटल विश्वासका फल क्या है ? सर्व बाधा अतिक्रम करके गुरुवाफ्यके अनुष्ठानमें दृढ़वती होने से तितिक्षा रूप महासाधनके फलसे क्या नहीं करादे सकता है ? उन इष्ट देवतोंके पूजाके लिये ( शरीर धारणोपयोगी आहारके लिये ) पत्र, पुष्प, फल, और जलका प्रयोजन होता है। पिता माताके परितृप्तिके लिये भक्ति सहकार उन लोगोंको पत्र, पुष्प, फल, और जल प्रदान करनेसे परम पिता परमेश्वर परब्रझमें ही वह सब अर्पित हो जाता है। पिता माताके परितोष साधनसे ही मनका मैल कट जाता है, संकोचता दूर होती है, इसलिये अन्तरमें प्रवेश करनेका अधिकार भी आ जाता है // 26 // .. यत् करोषि यदरनासि यजुहोषि ददासि यत्। ... यत् तपस्यसि कौन्तेय तत् कुरुष्व मदर्पणम् // 27 // .. शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः। . संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैयसि // 28 // अन्वयः। हे कौन्तेय ! यत् करोषि, यत् अश्नासि, यते पुहषि, यत् ददाति, यत् मदर्पणं कुरुष्ष; एवं (कुर्वन् ) कर्मबन्धनैः शुभाशुभफलैः मोक्ष्यसे; ( सन् ) संन्यासयोगयुक्तात्मा ( संन्यासः कर्मणां मदर्पणं, स एव योगः तेन युक्तः आत्मा चित्तं यस्य तयाभूतः त्वं ) मा उपैष्यसि ( प्राप्स्यसि ) // 27 // 28 // अनुवाद। हे कौन्तेय ! जो कुछ तुम करोगे, भोजनही करो, हषनही करो, और तपस्याही करो, उन सबको मुझे अर्पण करना; इस प्रकार करनेसेही शुभाशुभ फल देनेवाले कर्मबन्धन से मुक्त हो जाओगे; विमुक्त होकर संन्यासयोगमें युक्तचित्त होनेसेही मुझको पाओगे // 27 // 28 // व्याख्या। साधक ! जब तुम विषयभोग-लालसा लेकर रहते हो, तब तुम्हारे विषयासक्तिके लिये मातृभाव प्रकाश पाता है। और जो उस आसक्तिको तुम नहीं छोड़ सकते उसे कृपणता कहते हैं /

Loading...

Page Navigation
1 ... 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452