Book Title: Prakrit Vyakaran Praveshika
Author(s): Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Bhavan

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयुक्त वर्ण के नियम १७ ३. प्राकृत में संधि का निषेध दो भिन्न स्वरों की संधि प्राकृत में नहीं होती है । अर्थात् ई + अ / आ, इ / ई + उ / ऊ और उ / ऊ + इ / ई, उ / ऊ + ए / ओ इस तरह की संधि प्राकृत में नहीं होती है । यथा- दणुइंद, वहआइ, अहो अच्छरिअ, सञ्झावहु-अवऊदा इत्यादि । ४. विकल्प से संधि एक पद के अन्त और दूसरा पद के प्रारम्भ में जो स्वर वर्ण हैं वे स्वर वर्ण एक नम्बर नियम के अनसार हों तब विकल्प से संधि हो सकती है । यथा- वास + इसि = वासेसि, अथवा वासइसि । विसम + आयवो = विसमायवो अथवा विसमआयवो । दहि + ईसरो= दहीसरो अथवा दहिईसरो, साउ + उअयं = साऊअयं अथवा साउउअयां । ५. शब्द के बीच में यदि कोई व्यंजन वर्ण का लोप हो तो उसके बाद जो स्वर रह जाता है उस स्वर के साथ उसी पद में जो दूसरा स्वरवर्ण है उसकी संधि विकल्प से कदाचित् देखी जाती है । यथा- स + उरिसो = सूरिसो । इस तरह संधि प्राकृत में उचित नहीं है । लेकिन कभी-कभी होती है। ६. क्रिया में व्यंजन के लोप के कारण से जो स्वर रह जाता है उसके साथ परवर्ती स्वर की संधि नहीं होती है। वस्तुतः प्राकृत में दो स्वर वर्ण का अवस्थान पास-पास हो तो तब भी उसको संधि की आवश्यकता नहीं होती है । इसलिए प्राकृत में संधि के सभी नियम वस्तुतः विकल्प से हैं । ६. संयक्त वर्ण के नियम प्राकृत में दो विसदृश व्यंजन वर्ण कभी संयुक्त नहीं होते हैं । केवल अपने-अपने वर्गों के साथ सन्धि हो सकती है अर्थात एक ही वर्ग के साथ एक ही वर्ग की सन्धि और स स, ल ल, य य के साथ भी संधि हो सकती है। संस्कृत में भिन्न वर्ग की संधि हो सकती है पर इस प्रकार से प्राकृत में संधि नहीं होती है । इस विषय में कछ नियम इस प्रकार है For Private and Personal Use Only

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