Book Title: Prakrit Vyakaran Praveshika
Author(s): Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Bhavan

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० प्रथमा सु द्वितीया अम् तृतीया टा चतुर्थी डे पंचमी कारक संस्कृत के अनुसार प्राकृत में भी छ कारक है । विशेषता यही है कि सम्प्रदान के लिए केवल षष्ठी विभक्ति होती है । जिस कारण से संस्कृत में जो-जो कारक होता है उसी ढंग से प्राकृत में भी होता है । यद्यपि संस्कृत की नियमावली सर्वत्र नहीं चलती है तब भी हम तो उसे संस्कृत नियमावली ( आप यदि जानेंगे तो उसी ) से काम चला सकते हैं । ङसि www.kobatirth.org प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका कारक विभक्ति प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति नहीं होती हैं । इसलिए प्राकृत में सात विभक्तियाँ हैं । चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होगी । संस्कृत के अनुसार प्राकृत में विभक्ति नहीं हैं । प्राकृत में विभक्ति की उत्पत्ति संस्कृत से अलग होती है । प्राकृत में विभक्ति का स्वरूप निम्नलिखित हैं विभक्ति एकवचन षष्ठी ङस् सप्तमी ङि सम्बोधन सु ओ अनुस्वार (.) ण णं (णा) म्मि - तो, ओ, उ, हि, हिंतो स्स ए, लोप, या प्रथमा की तरह जस् शस् भिस् भ्यस् 11 सुप् जस् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुवचन विभक्ति का लोप, आ ए 31 For Private and Personal Use Only - हि, हिं, हिं आम् | ण, " तो, ओ, उ, हि, हिंतो, सुंतो णं सु, सुं प्रथमा की तरह शब्द रूप प्राकृत में दो तरह के शब्द होते है :- एक है स्वरान्त और दूसरा है व्यन्जनान्त । स्वरान्त शब्द केवल अ, आ, इ, ई, उ, ऊ हो सकता है क्योंकि एकारान्त तथा ओकारान्त शब्द प्राकृत में नहीं आते हैं । इसलिए केवल अकारान्त,

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