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२०
प्रथमा सु
द्वितीया अम्
तृतीया टा
चतुर्थी डे
पंचमी
कारक
संस्कृत के अनुसार प्राकृत में भी छ कारक है । विशेषता यही है कि सम्प्रदान के लिए केवल षष्ठी विभक्ति होती है । जिस कारण से संस्कृत में जो-जो कारक होता है उसी ढंग से प्राकृत में भी होता है । यद्यपि संस्कृत की नियमावली सर्वत्र नहीं चलती है तब भी हम तो उसे संस्कृत नियमावली ( आप यदि जानेंगे तो उसी ) से काम चला सकते हैं ।
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प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका
कारक विभक्ति
प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति नहीं होती हैं । इसलिए प्राकृत में सात विभक्तियाँ हैं । चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होगी । संस्कृत के अनुसार प्राकृत में विभक्ति नहीं हैं । प्राकृत में विभक्ति की उत्पत्ति संस्कृत से अलग होती है । प्राकृत में विभक्ति का स्वरूप निम्नलिखित हैं
विभक्ति
एकवचन
षष्ठी
ङस्
सप्तमी ङि
सम्बोधन सु
ओ
अनुस्वार (.)
ण णं (णा)
म्मि
-
तो, ओ, उ,
हि, हिंतो
स्स
ए,
लोप, या प्रथमा
की तरह
जस्
शस्
भिस्
भ्यस्
11
सुप्
जस्
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बहुवचन
विभक्ति का लोप, आ
ए
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-
हि, हिं, हिं
आम् | ण,
"
तो, ओ, उ, हि, हिंतो, सुंतो
णं
सु, सुं
प्रथमा की तरह
शब्द रूप
प्राकृत में दो तरह के शब्द होते है :- एक है स्वरान्त और दूसरा है व्यन्जनान्त ।
स्वरान्त शब्द केवल अ, आ, इ, ई, उ, ऊ हो सकता है क्योंकि एकारान्त तथा ओकारान्त शब्द प्राकृत में नहीं आते हैं । इसलिए केवल अकारान्त,