Book Title: Prakrit Vyakaran Praveshika
Author(s): Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Bhavan

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्या वाचक शब्द है । इसलिए विशेषण का रूप विशेष्य की तरह होता है । विशेषण साधारणतः उत्कर्ष और निकृष्ट वाचक और संख्यावाचक शब्द होता है । जब दो वस्तुओं में तुलना कर एक वस्तु को दूसरी से न्यून या अधिक बताना होता है तो उस विशेषण में तर या ईयस् प्रत्यय जोड़ा जाता है । एक से अधिक वस्तओं में से किसी एक को सबसे उत्कृष्ट या न्यून बतलाने के लिए विशेषण में तम अथवा इष्ठ प्रत्यय लगाया जाता है। प्राकृत में संस्कृत की तरह तर, तम अथवा ईयस, इष्ठ प्रत्यय जोड़ा जाता है । लेकिन जोड़ने के बाद शब्द प्राकृत के नियम के अनसार परिवर्तित होते हैं । ये तुलनामूलक रूप निम्नलिखित प्रकार से होते हैं । दो के मध्य तुलना Comparative Degree अणिट्टयर (१) तर > यर कतयर श्रेयस् > सेय (२) ईयस् कनीयस् > कणीयस पापीयस् > पापीयस दो से अधिक के मध्य तुलना Superlative Degree अणिट्ठयम तम > यम कतयम श्रेष्ट > सेट्ट इष्ठ कनिष्ठ > कणिट्ठ ज्येष्ठ > जेट्ठ पापिष्ठ > पाविट्ठ संख्या वाचक शब्द ८. अट्ठ १. एअ / एग एआ एअं २. दो / दवे / दोण्णि ३. तओ / तिण्णि ४. चत्तारो / चउरो / चत्तारि ५. पंच नव दस / दह ११. एक्कारस / एआरह १२. दवालस / बारस १३. तेरह १४. चउद्दह ७. सत्त For Private and Personal Use Only

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