Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
View full book text
________________
१२९ १७६
६७
१५२
कृ प्र-दीप
:आङ-दृङ्
Mor
८३
११०
'विलोट्ट विस--वद् विसह दल विसूर खिद् विहीर प्रति--ईक्ष विहोड तड् वीसर वि-स्मृ वीसाल मिश्र वुब्भ
वह बेअद
खच वेढ
वेष्ट्र . वेमय ন वेलव उपा-लम्भ
वञ्च वेल्ल रम् वेहव वञ्च् वोक्क विज्ञप् वोच्छं वच
सम्-आप समा-रच्
सन्दाण सन्दुम सन्धुक्क सन्नाम सन्नुम समाण समाण समार संभाव संवेल्ल सलह सव्वव सह साअढ़ सामग
२४५
८२ २२१
सं-वेष्ट श्लाघ्
१४२
९५ १५३ २२२
८८ १८१
१०६
दृश
वेलव
राज
१८७
१५६
९३ १६८ ९३
३८ ३/१७१
कृष् प्रिल प्रति-ईक्ष
१९०
सामय
सार
वीज
वोज्ज वोत्
समा-रच
वच
२११ १६२
सारव साह साहट्ट
गम्
सं-वृ
२
वि-कस्
साहर
वोल वोसट्ट वोसिर सक्क “संखुड्ड
स्विद्
२२४
शक्
२२९ २३० १६८
सिध्
सिज्ज सिज्झ सिञ्च सिप्प सिम्प
सिन्
सङ्घ
स्निह् । सिन् २५५ सिच ९६
सड
सद्
२१९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512