Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad

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Page 469
________________ VR$ एयम्मि देसयाले भीओ पारेवओ थरेथरंतो । पोसहसालमइगओ, 'रायं ! सरणं ति सरणं'ति ॥२॥ 'अभओ 'त्ति भणइ राया, 'मा भाहि' त्ति भणिए ट्रिओ अह सो तरस य अणुमग्गओ पत्तो, भिडिओ सो वि मणुयभासी ॥३॥ नहयलत्थो रायं भणइ - मुयाहि एयं पारेवयं, एस मम भक्खो । मेहरहेण भणियं-न एस दायव्वो सरणागतो. भिडिएण भणियं - नरवर ! जइ न देसि मे तं, खुहिओ कं सरणमुवगच्छामि ! ति मेहरहेण भणियं-जह जीवियं तुब्भं प्रियं निस्संसयं तहा सव्वजीवाणं. भणियं च - हंतुण परप्पाणे, अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दिवसाणं, करण नासेइ अप्पाणं ॥ ४ ॥ दुक्खस्स उब्वियंतो, हंतूण परं करेइ पडियारं । पाविहिति पुणो दुक्खं, बहुययरं तन्निमित्तेण ॥५॥ एवं अणुसिद्धो भिडिओ भणइकत्तो मेघमणक्खदुक्खद्दियस्स !. मेहरहो भणइ - अण्णं मंसं अहं तुहं देमि भुक्खपडिघाय, विसज्जेह पारेवयं, भिडिओ भणइ - नाहं सयं मयं मंसं स्वामि, फुरफुरेंतं, सत्तं मारेउं मंसं अहं खामि. मेहरेण भणियं जत्तियं पासवओ तुलइ तत्तियं स मम सरीराओ गेण्ड्राहि' एवं भवउ' ति भणइ (भिडियो) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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