Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
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છપર
सासुसभुद्रादिनु भा'. ११. फाणि (फाणितम् ) हीमोगा
म. १२. सन्निहिं कामे (सन्निधिं कामयेत् ) संययन ४२७. १३. पायं (पात्रम् ) पात्र. १४. पायपुंछणं (पादप्रोञ्छनम् ) २२६१. १५. राओ (रात्रौ) त्रिभा. १६. एसणिों (एषणीयम् ) શુદ્ધ આહાર=“શુદ્ધ આહારની ગવેષણ શી રીતે કરે.”
१. वुण्ण० (दे०) १२-भीत. २. छम्मेण (छद्मना) ४५248. 3. गग्गर (गद्गद) भराई मावेस-या/ गये. ४. उच्चयणिज्ज अयण्णसुहं (उत्त्यजनीयम्-अकर्णसुखम् ) त्याग ४२व! साय४, ने सुमन थाय तेयु. ५. पयलियंसू (प्रगलिताश्रुः) अरता छे मांसु नरेने'मांसुने पाती.'१. अणियत्त० (अनिवृत्त) ५२॥धान-आमने माधान थयेस.' ७. सग्गग्गला (स्वर्गार्गला) हेवला ने थामा मोमण सभान. ८. विवाइया (विपादिता) भराया.
मार नेषु: ५. पकर्णसुखम् ) त्यात
1. थरथरतो (दे०) ४५मान-पत, २. भिडिओ (दे०) श्येनपक्षा-सीयाl. 3. भुक्खदुक्खद्दियस्स (बुभुक्षादुःखार्दितस्य) क्षुधाना दु:मथा पीयेस!. ४. फुरफुरतं (पोस्फुरायमाणम् ) थरथरता, मई २१ पतi. ५. छुभेइ (क्षिपति) न छे.
(10) १. तामलित्ती (ताम्रलिप्ती) ये प्रायोन नगरी. सारक्षण (संरक्षण) २. उवहिनियडिकुसला (उपधिनिकृतिकुशला) माया ४५ ४२वामा मुशण. 3. चोक्खवाहणी (चोशवादिनी) शोय भवाहिनी ४. पोसे (प्रदोषे) स-याणे. ५. उदिक्खमाणी (उदीक्षमाणा) राह लेती. ६. विवाडेउं (विपातयितुम् ) भारी नांजवान. ७. वंजणाणि (पञ्जनानि) शा आहिस्साहिष्ट वस्तु. ८. उच्छंगे (उत्सङ्गे) मामा. ६. माउसुणिगाए (मातृशुनि कायाः) "भाता भरीनरी तरी उत्पन्न
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