Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
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एगत्थ वीयाणि वाविज्जंति, तेणं भणियं-भट्टा ! सुद्धं नीरयं भवउ, ऊसो य पडउ, तओ तेहिं किमकारणवेरिओ एवं भासइ ! त्ति, गहिओ बंधिओ पिटिओ य, सम्भावे कहिए मुक्को, भणितो य-एरिसे कज्जे एवं भण्णइ-बहुं एरिसं भवतु, 'भंडं भरेह एयस्स, तमो पुणो नयरसमुहं एइ, एगत्थ मॅडय नीणिज्जतं दर्छ भणइ-बहुं परिसं भवउ, भंडं भरेह एयरस, तत्थ वि गहिमो पिट्टिओ य सम्भावे कहिए मुको, भणिओ य एरिसे कज्जे एवं वुश्चइ एरिसेणं अञ्चंतवियोगो भवउ, अन्नस्थ विवाहे भणइ-अचंतविभोगो भवउ, तत्थ वि पिडिओ, सब्भाबे कहिए मुक्को, भणितो य एरिसे कज्जे एवं भण्णइ-निच्चं एरिसयाणि पेच्छिंतया होह, सासयं एयं भवउ, ततो गच्छंतो एगत्थ नियलबद्धं दंडियं दळूण एवं भणइ-निच्चं एरिसयाणि पेच्छंतया होह, सासयं च भे एयं हवउ, तत्थ वि गहिओ पिटिओ य, सब्भावे कहिए मुक्को, भणितो य-एरिसे कज्जे एवं भणिज्जासि-एयाओ भे लहुं मुक्खो हवउ त्ति, ततो गच्छंतो एगत्थ के मित्ता संघाडयं करिते पिच्छइ तत्थ भणइ-एयाओ भे लहु मोक्खो भवउ, तओ तत्थ वि पिट्टिओ, सब्भावे कहिए मुक्को गओ नयरे, तत्थ एगस्स दंडि(ग)-कुलपुत्तस्स अॅल्लीणो सो सेवंतों अच्छइ, अन्नया दुब्भिक्खे तस्स कुलपुत्तस्स अंबर्खल्लिया (जवागू) सिद्धिल्लिया, तस्स भज्जाए सो भण्णइजाहि महाजणमज्जाओ सद्दावेहि जेण भुंजइ, सीयला अपाओग्गा भविस्सइ, तेण गंतुं महायणमज्जे वडेणं सदेणं भणिमो.
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