Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
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४३२
होही तो चिय भयं, सुतस्स ते नस्थि संदेहो ॥४॥ सावि भयवेविरंगी , पुत्तं दंसेइ नाव कण्हस्स । ताव चिय तस्स ठियं, पैयइत्थं वरभुयाजुगलं ॥५॥ तो कण्हस्स पिउच्छा, पुत्तं पाडेइ पायपीडंमि । अवराहखामणत्थं, सो वि सयं से खमिस्सामि ॥६॥ सिसुवालो वि हु जुठवण-मएण नारायणं असब्भेहिं । वयणेहिं भणइ सो वि हु, खमह खमाए समत्थो वि ॥७॥ अवराहसए पुण्णे, वारिजंतो ण चिट्ठइ जाहे। कण्हेण तओ छिन्नं, चक्केण उत्तमंगं से ॥८॥
सूत्रकृताङ्गसुत्रवृत्तौ..
कमलामेला. बोरवईए बलदेवपुत्तस्स्स निसढस्स पुत्तो सागरचंदो नाम कुमारो, रूवेण य उकिट्रो सव्वेसिं संबाईणं इटो । तत्थ य बारवईए वत्थश्वस्त चेव अण्णस्स रणो कमलामेला नाम धूआ उक्किटुसरीरा । सा य उग्गसेण तुस्प्त धणदेवस्स वरिल्लिया। इओ य नारओ सागरचंदस्स कुमारस्स सगासं आगओ। अब्भुट्टिओ। उवविद्वं समाणं पुच्छइ-भयवं किंचि ! अच्छेरयं दिटुं । आमं दिहूँ। कहिं ? । इहेव बारवईए नयरीए कमलामेला नामं दारिया । कस्सइ दिन्निया ? । आम । कस्स ? । उग्गसेणनत्तुस्स धणदेवस्स । तओ सो भणइ-कहं
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