Book Title: Prakrit Vigyana Pathmala
Author(s): Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
Publisher: Opera Jain Society Sangh Ahmedabad
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૪૧૯
तइया रायरिसिम्मि, नमिम्मि 'अभिणिक्खमन्तंमि ॥५॥
अन्मुट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं ।
सक्को माहणरूपेण, इमं वयणमब्बवी ॥६॥ किण्णु भो अज्ज मिहिलाए, कोलाहलग संकुला । सुन्वन्ति दारुणा सदा, पासासु गिहेसु य ॥७॥ एमट्ठे निसामित्ता, उकारणचोइओ । तो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी ॥८॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ||९|| वारण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया असरणा अंत्ता, एए कन्दन्ति भो खगा ॥१०॥ एयम निसामित्ता, उकारणचोइओ ।
तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥११॥
एस अग्गी य वाऊ य, एयं डज्झइ मन्दिरं । भयवं अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खह ॥ १२॥ एयम निसामित्ता, हेउकारणचो भो । तओ नमि रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी ॥१३॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसि भी नत्थि किं चणं । मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किं च णं ॥ १४ ॥
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चत्तपुंत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जइ किंचि, अपियं पि न विज्जई ॥ १५॥
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