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तेहि ह
ताहि / ताहितीह
हसिव्वं /हसियव्वं / हसितव्वं / हसदव्वं / हसणीयं ह से अव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं / हसेदव्वं
पाठ-45 का पादटिप्पण 1 (क) देखें |
पाठ-45 का पादटिप्पण 1 ( ख ) देखें ।
हसिव्वं / हसियव्वं /हसितव्वं /
हसिदव्वं / हसणीयं हसेव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं /
हसे दव्वं
प्राकृत रचना सौरभ ]
Jain Education International 2010_03
उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं तथा वाक्य भाववाच्य में हैं ।
अव्व / यव्व / तव्व / दव्व प्रत्यय लगने के पश्चात् 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । आकारान्त आदि क्रियानों में भी ये ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं—ठायव्व, ठादव्व, ठातव्व, होयव्व, होदव्व, नेयव्व, नेदव्व श्रादि ।
= उन (पुरुषों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
अर्द्धमागधी में विधि कृदन्त के लिए रिगज्ज प्रत्यय भी अकारान्त क्रियाओं में जोड़ा जाता है ---हसरिगज्ज, जग्गरिगज्ज आदि । ( घाटगे, पृष्ठ 144; पिशल, पृष्ठ 812 ) 1
=
= उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
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