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इ, ईकारान्त स्त्रीलिंग
एकवचन द्वितीया तत्ति द्वितीया च्छि
तत्ति तृप्ति, लच्छी लक्ष्मी बहुवचन तत्ती तत्तीउ/तत्तीग्रो लच्छी/लच्छी उ/लच्छीमो लच्छीमा
अम्मि
उ, ऊकारान्त स्त्रीलिंग
- तणु =शरीर, चमू सेना एकवचन
बहुवचन द्वितीया तणुं
तणू/तणूउ/तणूप्रो द्वितीया चमुं
चमू/चमूउ/चमूनो वाक्यों में प्रयोग
पुल्लिग जइ कोक्कन्तो/ हरिसामि/ =मैं यति को बुलाता हुआ
कोक्कमाणो आदि प्रसन्न होता हूँ। गामणि पणमन्तो/ ___ अच्छइ/ =वह गाँव के मुखिया को
पणममाणो आदि प्रणाम करता हुआ बैठता है। ____ तरु सिंचन्ता/ थक्कइ/अादि वह पेड़ को सींचती हुई सिंचमारणा
थकती है। खल' कोक्किऊण हरिसइ/प्रादि वह खलियान को साफ करनेपादि
वाले को बुलाकर प्रसन्न
होता है। नपुंसकलिंग वारि पिबिउं/पिबि, उट्ठसि/आदि =तुम जल पीने के लिए उठते
हो । सो
वत्, किणिउं/ उज्जम इ/आदि=वह वस्तु खरीदने के लिए किणिदुं
प्रयत्न करता है। स्त्रीलिंग अहं/हं/अम्मि लच्छि चुइऊण/आदि उल्लसामि! =मैं लक्ष्मी को त्यागकर खुश
आदि होता हूँ। रक्खि / उज्जमन्ति/ वे शरीर को रक्षा करने के रक्खिदु अादि लिए प्रयत्न करते हैं ।
तुमं तु (तुह
तण
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[ प्राकृत रचना सौरभ
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