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पाठ 57
भूतकालिक कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग)
प्राकृत में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बना लिया जाता है (देखें पाठ-42) । भूतकालिक कृदन्त विशेषण का भी कार्य करते हैं । जब सकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्यय लगाये जाते हैं तो इसका प्रयोग कर्मवाच्य में ही किया जाता है । कर्मवाच्य बनाने के लिए कर्ता तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में रखा जाता है। कर्म जो द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में होता है, उसको प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) में परिवर्तित किया जाता है तथा भूतकालिक कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार चलते हैं। पुल्लिग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार इनके रूप चलेंगे । भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'मा' प्रत्यय जोड़ा जाता है तो वह आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द बन जाता है ।
क्रियाएँ
देक्ख-देखना
कोक्क=बुलाना, पणम=प्रणाम करना, अच्च पूजा करना,
सुण=सुनना, रक्ख= रक्षा करना, इच्छ= इच्छा करना
पाल=पालना
पुल्लिग
नरिंदेगा/नरिदेणं
कई
कोक्कियो/कोक्किदो/ =राजा के द्वारा कवि कोक्कितो
बुलाया गया।
नरिदेण/नरिदेणं
कई कइउ/ कोक्किया/कोक्किदा/ कइयो/कइणो कोक्किता
राजा के द्वारा कवि बुलाए गए।
नरिदेहि/नरिदेहिं/ नरिंदेहि
कई/कइउ/ कोक्किया/कोक्किदा/ =राजाओं के द्वारा कवि कइयो/कइणो कोक्किता
बुलाए गए।
हरिणा
दिवायरो
अच्चियो/अच्चिदो/ अच्चितो
हरि के द्वारा सूर्य पूजा गया।
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प्राकृत रचना सौरभ
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