Book Title: Prakrit Praveshika 1
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 191
________________ ३५५ परि सि टुं-२ पाइय-भासा-गुणाई ३५६ १"उज्झउ सक्कय-कव्वं सक्कय-कव्वं च निम्मियं जेण । वंस-हरं व पलित्तं तडयतट्टत्तणं कुणइ ॥१०॥ पाइय-कव्वम्मि रसो जो जायइ तह व छेय-भणिएहिं । उययस्स उ वासिय-सीयलस्स८ तितिं न वच्चामो ॥११।। ललिए महुर-क्खरए जुवई-जण-वल्लहे स-सिंगारे । संते पाइय-कव्वे को सक्कइ "सक्कयं पढिउं ॥१२॥ परि सि टुं-३ गाहा-सत्तसईए गाहाओ. अह पाइआर्हि भासाहि संसयं बहुलं आरसिं तं तं । अवहरमाणं सिरि-वद्धमाण-सामि नमसामो ॥१॥ सयलाओ इमं वाया विसंति, एत्तो य ऐति वायाओ । एंति समुदं चिय, ऐति सायराओ च्चिय जलाई ॥२॥ अमियं पाउअ-कव्वं पढिउं सोउं च जे ण जाणंति । कामस्स तत्त-तत्ति कुणंति, ते कह ण लज्जंति ? ॥३॥ 'उम्मिल्लइ लायण्णं पयय-च्छायाए सक्कय-पयाणं । सक्कय-सकारुक्करिसणेण पययस्स वि पहावो ॥४॥ णवमत्थ-दसणं संनिवेस-सिसिराओ बंध-रिद्धिओ । अविरलमिणमो' आ-भवण-बंधमिह णवर पययम्मि ॥५॥ हरिस-विसेसो वियसावयो य "मउलावयो य अच्छीण । इह 'बहि-हुत्तो अंतो-''मुहो य हिययस्स विष्फुरइ३ ॥६॥ १"परुसो सक्कय-बन्धो, पाउअ-बंधो वि होइ सुउमारो, । पुरिस-महिलाणं जेत्तिअमिहंतरं तेत्तिअमिमाणं ॥७॥ सक्कय-कव्वस्सऽत्थं जेण न याणंति मंद-बुद्धीया । सव्वाण वि सुह-बोहं तेणेमं पाययं रइयं ॥८|| गुढ-उत्थ-देसि-रहिअं सुललिय-वन्नेहिं विरइयं रम्मं । पायय-कव्वं लोए कस्स न हिययं सुहावेइ? ||९|| मरगय-सूई-विद्धं मोत्तियं पिअइ आयय-ग्गीवो । मोरो पाउस-याले तणग्ग-लग्गं उअअ-बिन्दुं ॥१॥ अलिअ-कुविपि कय-मंतुअंव में जेसु सुहय ! "अणुणेन्तो । ताण दिअहाण "हरणे रुआमि, ण उणो अहं कुविआ ॥२॥ झंझा-वाउत्तिण-घर-विवर- पलोद्त-सलिल-धाराहि । "कुड़-लिहिओहि-दिअहं रक्खइ अज्जा कर-यलेहि ।।३।। "अज्जं गओ"त्ति, "अज्जं गओ"त्ति, "अज्जं गओ"त्ति गणिरीए । पढमव्विअ दिअहद्धे कुड्डो लेहार्हि चित्तलिओ ॥४॥ तह मेहागम-संसि-आगमणाणं पईण मुद्धाओ । मग्गमवलोयमाणीओ रणिअइ पाउसिय-दइआओ ॥५॥ सो णत्थि एत्थ गामे, जो एयं “महमहंत-लायण्णं । तरुणाण हियय-"लूर्डि परिसक्कंति निवारेइ ॥६॥ D:\mishra sadhu\prakrta.pm5/3rd proof

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