Book Title: Prakrit Praveshika 1
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 194
________________ ३६१ हत्थि- हत्थ-बाहुं धंत-कणग-रुअग-निरुवहय"-पिंजरं पवर-लक्खणोवचिअ-सोम-चारु-रूवं । २"सुइ-सुह-मणाभिराम-परम-रमणिज्ज-वर-देव-"दुंदुहि निनाय-महुरयर-सुह-गिरं ॥९॥ वेड्डओ ॥ अजिअं जिआरि-गणं जिअ-सव्व-भयं भवोह-रिउं । पणमामि अहं पयओ पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ रासालुब्धओ २"इक्खाग ! विदेह-नरीसर ! नर-वसहा ! मुणि-वसहा ! नव-सारय-ससि-सकलाणण ! विगय-तमा ! विहुअ५-रया ! अजिउत्तम ! तेअ-गुणेहि, महा-मुणि ! अमिअ-बला ! विउल कुला ! पणमामि ते भव-भय-मूरण ! जग-सरणा ! मम सरणं ॥१३॥ चित्तलेहा सिरि-संति-जिण-थुई देव-दाणविंद-चंद-सूर-वंद ! हट्ठ-तुट्ठ-जिट्ठ-परमलट्र-रूव ! धंत-रूप्प-प-सेय-सद्ध-निद्ध-धवलदंत-पंति ! संति ! सत्ति-कित्ति-मुत्ति-जुत्ति-गुत्ति-पवर ! दित्त-तेअ-वंद ! २९धेय ! सब्व-लोअ-भाविअ-प्पभाव ! णे! पइस मे समाहि ॥१४|| नारायओ ॥ सिरि-अजिअ-जिण-थुई विमल-ससि-कला-ऽइरेअ-सोमं वितिमिर सूर-करा-ऽइरेअ-तेअं ति-३ अस-वइ-गणा-ऽइरेअ-रूवं धरणि-धर-प्पवरा-ऽइरेअ-सारं ।।१५।। कुसुम-लया ॥ ३६२ सत्ते अ सया अजिअं सारीरे य बले अजिअं । तव-संजमे य अजिअं एस थुणामि जिणं अजिअं ॥१६॥ भुअग-परि-रिंगिअं [ जुम्मं ] सिरि-संति-जिण-थुई ३"सोम-गुणेहिँ पावइ न तं नव-सरय-ससी तेअ-गुणेहिं पावइ न तं नव-सरय-रखी । रूव-गुणेहिँ पावइ न तं ति-अस-गण-बई सार-गुणेहिँ पावइ न तं धरणि-धर-वई ॥१७॥ खिज्जिअयं ।। तित्थ-वर-पवत्तयं तम-रय-रहिअं धीर-जण-थुअ-ऽच्चिअं चुअ५-कलि-कलुसं संति-सुह-प्पवत्तयं ति-गरण-पयओ संतिमहं महा-मुणि-सरणमुवणमे ॥१८|| ललिअयं ।। सिरि-अजिअ-जिण-थुई विणओणय-सिर-रइय-ऽञ्जलि-रिसि-गण-संथुअं थिमिअं विबुहा -ऽहिव-धण-वइ-नर-वइ-थुअ-महिअ-ऽच्चिअं बहुसो । +अइ-रुग्गय-सरय-दिवा-यर-समहिअ-सप्पभं तवसा गयणंगण-वियरण-समुइअ-चारण-वंदिअं सिरसा ॥१९॥ ॥किसलय-माला ॥ असुर-गरुल-परिवन्दिअं किन्नरोरग २-नमंसिअं। देव-कोडि-सय-संथुअं समण-संघ-परिवन्दिअं॥२०॥ सुमुहं । अभयं अणहं अरयं अरुयं अजियं अजिअंपयओ पणमो ॥११॥ विज्जु-विलसिअं [विसेस] ___D:mishratsadhu prakrta.pm5/3rd proof

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