Book Title: Prakrit Bhasha Ka Prachin Swarup Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith View full book textPage 9
________________ खारवेल की कुम्हारी पर्वत ( ई. पू. प्रथम शती) की वाचना में उनका अर्धमागधी स्वरूप स्थिर रहा, किन्तु ईसा की तृतीय शती में आर्य स्कंदिल की अध्यक्षता में मथुरा में सम्पन्न वाचना में वहां की क्षेत्रीय भाषा शौरसेनी का प्रभाव उस पर आया और इसे माथुरी वाचना के नाम से जाना गया। ज्ञातव्य है कि यापनीय और दिगम्बर अचेल परम्परा के ग्रन्थों में जो भी आगमिक अंश पाये जाते हैं, वे जैन शौरसेनी के नाम से ही जाने जाते हैं, क्योंकि इनमें एक ओर अर्धमागधी और दूसरी ओर महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव देखा जाता है। अचेल परम्परा के आगम तुल्य ग्रन्थों की भाषा विशुद्ध शौरसेनी न होकर अर्धमागधी और महाराष्ट्री प्रभावित शौरसेनी है और इसीलिए इसे जैन शौरसेनी कहा जाता है। इस प्रकार, मगध (मध्य बिहार ) एवं समीपवर्ती क्षेत्रों की और शौरसेन प्रदेश (वर्त्तमान पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा ) की क्षेत्रीय बोलियों से साहित्यिक प्राकृत भाषा के रूप में क्रमशः अर्धमागधी और शौरसेनी प्राकृत का विकास हुआ। अर्धमागधी जब पश्चिम भारत और सौराष्ट्र पहुँची, वह शौरसेन प्रदेश से होकर ही वहाँ तक पहुँची थी, अतः उसमें क्वचित् शब्दरूप शौरसेनी के आ गये। पुनः, मथुरा की वाचना के समकालिक वलभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में जो वाचना हुई उसमें और उसके लगभग 150 वर्ष पश्चात् पुनः वलभी में (वीर निर्वाण संवत् 980) में जो वाचना होकर आगमों का सम्पादन एवं लेखन कार्य हुआ, उस समय उनमें वहां की क्षेत्रीय बोली महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव आया। इस प्रकार, अर्धमागधी आगम साहित्य क्वचित् रूप से शौरसेनी और अधिक रूप में महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित हुआ। फिर भी, ऐसा लगता है कि नियुक्ति, भाष्य और चूर्णिकाल तक (ईसा की द्वितीय शती से सातवीं शती तक) उसके अर्धमागधी स्वरूप को सुरक्षित रखने का प्रयत्न भी हुआ है। चूर्णिगत 'पाठों' में तथा अचेल परम्परा के मूलाचार, भगवती आराधना तथा उसकी अपराजितसूरि की टीका, कषायपाहुड, षट्खण्डागम आदि उनकी टीकाओं में ये अर्धमागधी रूप आज भी देखे जाते हैं। उदाहरण के रूप में सूत्रकृतांग का वर्त्तमान 'रामगुत्ते' पाठ, जो मूल में रामपुत्ते था, चूर्णि में 'रामाउत्ते' के रूप में सुरक्षित है। इसी प्रकार, हम देखते हैं कि मागधी कैसे अर्धमागधी बनी और फिर उस पर शौरसेनी और महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव कैसे आया? इन प्राकृत भाषाओं के कालक्रम की दृष्टि से विचार करें, तो मागधी में आसपास की क्षेत्रीय बोलियों के प्रभाव से साहित्यिकPage Navigation
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