Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 48
________________ ६१७ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. हवे एक कर्म क्रियानो कर्ता एकज होय, ते स्थापन करेजेः-श्रथ कर्ता कर्म कि याप्रतिस्थापनाः-- ॥दोहाः।- एक कर्म कर्त्तव्यता, करै न कर्त्ता दोय; जुधां दरब सत्ता सु तो, एक ' जाव क्यों होय.॥ ए॥ __ अर्थः- ए वात तो खुसी ने के, एक कर्मनी कर्त्तव्यता के क्रिया ते एकज होयजे. अने तेनो कर्त्ता पण एकज होय, पण बे कर्ता एकज क्रियाना करनार नहोय. अहीं चेतन अव्यसत्ता ने पुजलव्यसत्ता ते तो सुधा के बे प्रकारे जुदी जुदी बे, ते माटे एक नाव एक कर्म केम बने ? ॥ ए॥ हवे कर्त्ता कर्म ने क्रियानो विचार कहे. अथ कर्त्ताकर्म क्रिया विवरण: ॥सवैया इकतीसाः।-एक परिनामके न करता दरब दोय, दोय परिनाम एक दर्ब न धरतु है; एक करतूति दोश् दर्ब कबहों न करै, दोई करतूति एक दर्व न करतु है; जीव पुदगल एक खेत श्रवगाही दोई, अपने अपने रूप कोउ न टरतु है, जड प रिनाम निको करता है पुदगल, चिदानंद चेतन सुनाउ थाचरतु है ॥ १० ॥ अर्थः-एक परिणामना बे अव्य कर्ता न होय, श्रने एक प्रव्य जे बे ते बे परिणाम धारण करे नही; ए रीते बे जव्य मलीने एक करतूती के० किया क्यारे पण नज करे. तेमज एक अव्य बे क्रिया पण नहीज करे; ए व्यवस्था बुकि कहेवा लायक कहेडे के, जीव थने पुदगल एकमेक थई रह्यां बे; तेथी ए बंने एक देत्रावगाही थयां पण पोत पोताना स्वनावश्री कोई टले नही; तेथीपुजल जे जे ते जड जे; ते जडपरिणाम नोज कर्ता थाय; अने चिदानंद चेतन डे ते चेतन स्वनावने श्राचरे ॥१०॥ हवे सम्यक्त्वश्रवस्थामा कर्मनो अकर्ता अने मिथ्यात्वश्रवस्थानेविषे कर्मनो कर्त्ता ने एम कहेजेः-श्रथ सम्यक्त्वमिथ्यात्वकथनं:___॥सवैया इकतीसाः॥- महा ढीठ पुःखको वसीठ पर दर्वरूप, अंध कूप काहुपै निवास्यो नहि गयो है; ऐसो मिथ्याजाव लग्यो; जीवकों अनादिहीको, याही अहं बुधि लिये नाना जांति नयो है; काढू समै काहू को मिथ्यात अंधकार नेद, ममता उदि शुद्ध जाउ परिनयो है; तिनही विवेक धारि बंधको विलास मारि, श्रातम सकतिसों जगत जीत लयो है. ॥११॥ अर्थः- महाधृष्ठ भने दुःखनो पढ श्रात्मऽव्य ते परव्य के पुजलव्य जेनुं रूप बे, पिंड , अने जेमां सत्य दृष्टि पोची शकती नथी, तेमाटे अंधकूप समान बे; अने कोस्थी निवारण नथी थतो, एवो मिथ्यानाव जे मिथ्यात्व मोह कर्म ते जीवने श्र नादि काल थकी लागेलुं डे, एथी परऽव्य तरफ जीवनी शहंबुधि लागी, तेथी जीव म . Jain Education International For.Private &Personal use Only www.jainelibrary.org

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