Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 133
________________ श्री समयसारनाटक. ज०३ होय तेहिज जुएबे, एटले सत्य पणे जाणे, तेने वारणसीदास नमस्कार करे ॥४॥ हषे मोद पदार्थनी उत्पत्तिनो क्रम कहेजेः-अथ मोद उत्पत्ति वर्णनंः।॥ उप्पय बंदः-नयो गुफ अंकूर, गयो मिथ्यात् मूर नशि; क्रमक्रम होत उदोत, सहज जिम शुक्लपद शशि; केवल रूप प्रकासि, नासि सुख रासिधरम धुव; करि पूर न थिति थाज, त्या गिगतनाव परम हव; इह विधि अनन्य प्रजुता धरत, प्रगटी बंद सागर नयो; अविचल श्रखंड अननय अखय, जीव दरब जगम हि जयो. ॥४॥ अर्थः-शुद्धतानो अंकुर प्रगट थतां मिथ्यात मूलश्री नाश पाम्युं, तेवारे जेम थ जवालीया पखवामोयामां चंद्रमा क्रमे क्रमे उद्योतवंत थायडे, एरीते श्रात्मापण क्रमे क्रमे उद्योत थतां केवल ज्ञान रूपनो प्रकाश थाय, श्रने श्रात्मानो निश्चल ध्रुव धर्म सुख समुह ते नासे, ते पनी थायुष्य कर्मनी स्थिति पूर्ण करीने अने मनुष्य गतिनो नाव बोडीने परमात्मारूपे थाय, एरीते अनन्य प्रजुता एटले सर्वथी श्रेष्टता धारण करे. कोनी पेठे ? तो के जेम पाणीनी बुंदबुंद एकठी मली समुछ थायडे तेम श्रात्मा गु णना अंश मे क्रमे प्रगट करतो पूर्ण थयो, ते पळी अविचल, अखंग, अजय ने थ दय एवं जीव जव्य जगत्ने विषे सदा जयवंत थायडे. ॥४॥ __हवे श्रष्ट कर्मनो नाश थयेथी जे श्रात्मामां सहज श्राठ गुण प्रगट थाय ते कहे-अथ श्रष्ट कर्म नाशते श्रष्ट गुन प्रकाश वर्णन:____॥ सवैया इकतीसाः॥- ज्ञानावरनी के गये जानिये जु है सु सब, दंसनावरनके ग येते सब देखिये; वेदनी करमके गयेते निराबाध रस, मोहनीके गये शुक चारित विसे खिये, थानकर्मगये अवगाहनअटल हो, नामकरमगये ते अमूर्तिक पेखिये; श्रगुरुशलघुरूप होई गोत कर्म गये, अंतराय गयेते अनंत बल लेखिये. ॥ ४५ ॥ अर्थः- ज्ञानावरणीय कर्म नाश थता लोकालोकमां जे वस्तु , ते सर्व जणाय, एटले केवल ज्ञान प्रकाश थाय; अने दर्शनावरणीय कर्मनो क्षय थवाथी लोकालो कना नावने सामान्यपणे जोईये, एटले केवल दर्शनगुण प्रगट थाय, श्रने वेदनीय कर्मना दयथी निराबाध रस उपजे एटले श्रात्मा बाधपणाथी मुक्त थाय, ते अबा धपणे अनंत सुखरूप गुण उपजे; वली मोहनीय कर्मनो नाश थयेथी विशेषणपणे शुद्ध चारित्र प्रगट थाय, एटले यथाख्यात चारित्र स्पष्ट गुण होय; श्रायु कर्मनाश थयेथी अवगाहनानी सादि अनंत स्थिति थाय (आयुकर्मगते निश्चला स्थितिवति); नाम कर्म नाश थयेथी श्रमूर्तिकपणुं जीवनुं शुरू स्वरूप उपजे; गोत्र कर्मनो क्षय थयेथी अगुरुलघु गुण उपजे, जेथी जीवमा लघुपणु तथा गुरुपणु न होय; श्रने अं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228