Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री समयसारनाटक. हवे पांच प्रकार सम्यक्त्वनो नाश करे ते कदे:-श्रथ नाश पंचक यथाः॥ दोहराः ॥-ज्ञान गर्व मतिमंदता, नितुर वचन उदगार; रुपनाव बालस दसा, नास पंच परकार. ॥१०॥
अर्थः-शानना गर्वथी, बुधिनी मंदताथी, कठण वचनना उदगार के कदेवावी, रोज नाव धरवाथी, बालसु पणाथी,एवी रीते पांच प्रकारे सम्यक्त्वनो नाश थायजे. हवे दिगंबर संप्रदायथी सम्यक्त्वना पांच अतिचार कहेः-अथ अतिचार पंचकयथाः
॥दोहाः ॥-लोग दास जय लोग रुचि, अग्रसोच थिति चेव; मिथ्या धागमकी जगति, मूषा दरसनी सेवा ॥१९॥ चोपाई॥-थतीचार ए पंच प्रकारा; समल करदि समकितकी धारा; फूषन नूषन गति अनुसरनी; दसा श्राप समकितकी बरनी॥१२॥
अर्थः-सम्यक्त्वनी क्रियाथी मने लोक हसशे एवो मनमां जय राखे,पांच इंडियना विषयजोगनी रुचि राखे,आगल महारुं शुं थाशे एवी पोतानी स्थितिनुं चिंतन करतो रहे, मिथ्यात्व दर्शनना जे आगम सिद्धांत डे तेनी नक्ति करे,पांचमुं मिथ्या दर्शननी सेवा करे ॥११॥ ए पांच प्रकारना अतिचार ते सम्यक्त्वनी उज्वल धाराने मल स हित करेठे, एवी भूषण गतिनी पाउल लागी अने नूषण गतिने पाबल लागी रहे ए समकितनी बाठ दशाने वरणी ॥ ११॥ हवे जे सात प्रकृतिना दय अथवा उपशमथी सम्यक्त्व उपजे ते कहेजेः
थथ सप्त प्रकृति यथाः॥ दोहराः ॥-प्रकृति सात अब मोहकी, कहों जिनागम जोश जिन्हको उदै नि वारिके, सम्यक दरशन हो ॥ १३ ॥ सवैया इकतीसाः ॥-चारित मोहकी चारि मि थ्यातकी तीनि तामें,प्रथम प्रकृतिअनंतानुबंधी कोहनी;बीजी महामान रस नीजी माया नई तीजी, चोथी महालोज दसा परिगद पोहनी; पांच मिथ्यात मति ठी मिश्र परनति, सातई समे प्रकृति समकित मोहनी; एई षट बिंगवनितासी एक कुतियासी, सातो मोहप्रकृति कहावे सत्ता रोदनी ॥ १४ ॥
अर्थः-हवे मोहनीयनी सात प्रकृति श्री जिनेश्वरनुं श्रागम जोई कहुंचं. जे सात प्रकृतिनो उदय निवारवाथी सम्यक्त्व दर्शन प्रगट थाय ॥१३॥ मोदनीय कर्मनाबे नेद बेः-एकतो चारित्र मोहनीय,बीजी मिथ्यादर्शन मोहनीय,तेमांचारित्र मोहनीयनी चार प्रकृति, अने मिथ्या दर्शन मोदनीयनी त्रण प्रकृति मली सात प्रकति बे; तेमां प्रथम प्रकृति अनंतानुं बंधी कोहनी के क्रोधनी, बीजी प्रकृति महा अनिमानना रसमां जीनो थको रहे ते अनंतानुबंधी मान, थने त्रीजी प्रकृति महामायामय ते अनंतानुबंधी माया, चोथी प्रकृति महालोन दशामां परिग्रहनी पोषण करनार ए श्र
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