Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
उन्श
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. श्रर्थः-सचित्तनो परिहारि तो प्रथमनीज रीते बे. अने दिवसे ब्रह्मचर्य वधारे पाले. अने पंचमी श्रादिपर्व आवे दिवसरात्रिमा एटले आठ प्रहर ब्रह्मचर्य पाले त्यां नववाडे करीने ब्रह्मचर्यवृत्तनी रक्षा करे, ते पुरुष बठी प्रतिमानो साधनहार होय ते बमास लगणनी जाणवी ॥ ३० ॥
हवे सातमी ब्रह्मचर्य प्रतिमानो विवरो कहे जेः-श्रथ सप्तमी प्रतिमा यथाः
॥ चोपाई ॥-जो नववामि सहित विधि साधे; निशिदिन ब्रह्मचर्य श्राराधे; सो स तम प्रतिमाधर ज्ञाता; शील शिरोमनि जगत विख्याता ॥ ३५ ॥
अर्थः-जे श्रावक नववाड सहित जे ब्रह्मचर्यवृत्तनो विधि , ते विधिये रात दिवस ब्रह्मचर्यने आराधतो रहे, अने जे पागल प्रतिमानी क्रिया कही ले तेने तो लीधो रह्या बे. एवो जे श्रावक , तेतो सातमी ब्रह्मचर्य प्रतिमानो धरनार ज्ञानी पुरुषशील शिरोमणि जगतमा प्रख्याति पामेलो जाणवो ॥३॥
हवे बांही प्रसंगथी नव वाडनो विवरो कहे जेः-अथनौवाडि यथाः॥ कवित्तबंदः॥-तियथलवास प्रेमरुचि निरषन, देपरीब जावन मधुवेन; पूरवनो गकेलि रसचिंतन, गुरु श्रादार खेत चितचेन; करि सुचि तन सिंगर बनावत, तियप रजंक मध्यसुखसेन;मनमथ कथा उदरि नरि नरि नोजन,ए नववाडि जान मतजेन॥४॥
श्रर्थः-ज्या स्त्री वसे त्यां वास न करवो, प्रेमरुचि राखीने स्त्रीना अंगोपांग देख वां नहीं, दृष्टिदोषर्नु निवारण करीने, श्राडो पमदो थापीने स्त्रीना मधुर वचन सां नले नहीं, पूर्व कालमा जे जोग क्रीडा करी होय तेनो रस चिंतवे नहीं, चित्तना चेनने अर्थे घृतादिक सहित गरिष्ट आहार लेही, स्नान मझानथी शरीरने पवित्र करीने श्रृंगार शोना सजे नहीं, स्त्रीने सुवाना पलंगमा सुखसेन करे नहीं, मन्मथ जे कंदर्प तेनी कथा कहे नहीं, पेट जरीने नोजन न करे, ए नव वामो जैन मतमा जाणवी. ए बहुज आनंद का। ॥ ४० ॥ हवे श्रावमी निरारंज प्रतिमानो विवरो कहे ः-श्रथ अष्टमी प्रतिमा यथाः
॥ दोहराः ॥-जो विवेक विधि आदरे, करे न पापारंज; सो अष्टम प्रतिमा धनी, कुगति विजे रन थंन ॥४१॥
अर्थः-जे कोई श्रावक पाबली सर्व क्रिया करतो थको विवेक सहित विधि वि. शेष श्रादरे, अने पापनो श्रारंज पोताना हाये न करे तेतो आग्मी निरारंज प्रति मानो धरनार श्रावक कुगतिना विजयनो रणथंज रूप थई रह्यो वे ४१॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228