Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 209
________________ श्री समयसारनाटक. पए अने बावीस अनद डे ते कलुबु. जे गुणने संग्रह करवाश्री अने जे अन्नदने त्याग वाथी श्रावकनो पद गुणसंग्रहीत शोजायमान थाय ते कडंबु. ॥ २६ ॥ हवे भावकना एकवीस गुणनां नाम कहेजेः-अथ श्रावक इकवीसगुन कथनः ॥ सवैया इकतीसाः ॥-लजावंत दयावंत प्रसंत प्रतीतवंत, परदोषकों ढकैया पर उपकारी है; सोम दृष्टि गुन ग्राही गरिष्ट सबकों श्ष्ट, सीष्ट पदी मिष्टवादी दीरग विचारी है; विशेषज्ञ रसज्ञ कृतज्ञ तज्ञ धरमज्ञ, नदीन न अनिमानी मध्य विवहारी हैस हजै विनीत पाप क्रियासों अतीत एसो, श्रावक पुनीत कवीस गुन धारी है ॥२७॥ अर्थः-लजावंत १, दयावंत २, शांतमूर्ति ३, प्रतीतवंत ४, परदोषनो ढांकनार ५, परउपकारी ६, सोमदृष्टि ७, गुणग्राहक ज, गुरुवाई ए, सर्वनो ववन १०, शिष्टाचारनो पदी ११, मिष्टवचन बोलनार १२, जंडो विचार विचारे १३, विशेष ज्ञाननो जाणनार १५, शास्त्ररस जाणनार १५, करेला उपकारने जाणे १६, ते उपकारने जाणे १७, ध मैने जाणनार १७, श्रदीनपणुं ग्रहे अनिमानी रहे नही रए, एवा मध्यम व्यवहारमा रहे, के जेथी सहज स्वनावे विनयवंत होय २०, अने पापक्रियाथी रहित होय २१, एवा पवित्र श्रावक एकवीश गुणना धारनार थाय. ॥ २७॥ हवे जघन्य श्रावकने बावीस वस्तु अजद बेः-श्रथ बावीसअनद वर्ननः ॥ कवित्त बंदः-उरा घोरवरा निसनोजन, बहु बीजा वेगन संधान; पीपर वर जंबरि कलूंबरी, पाकर जोफल हो जान; कंद मूल माटी विष आमिष, मधु माषन अरु मदिरापान; फल अति तुछ तुसार चलित रस, जिनमत ए बावीस अषान. ॥२॥ अर्थः-गमोरा हेमा करहा १, काचा धोलनां वमा २, रात्री नोजन ३, बहु बीज फल ते दामम प्रमुख ४, वेगण ५, श्रथाणुं पाणीमांहेलु ६, पीपलनी पीपी ७, वम वृदनां फल , घोलरनां फल ए, कवंबरनां फल १०, पाकरीनां फल १९, अजाएयां फल १२, कंदमूलनी जाति सर्व १३, माटीनीजाति १४, अफीमप्रमुख १५, मांस १६, मधु १७, मांखण १७, मदिरापान १ए, बहु तुब फल काचुं फल २०, हीम २१, जेनो वर्ण, रस, गंध, स्पर्श फरी गयो होय ते चलित रस , ए बावीस वस्तु श्री जिने श्वरना मत धारीने अनद बे. ते खावी नही ॥२७॥ ॥ दोहराः ॥-अब पंचम गुन थानकी, रचना बरनो अल्प; जामे एकादश दशा, प्रतिमा नाम विकल्प. ॥ए॥ अर्थः-हवे देशविरतीनामे पांचमा गुनथाननी रचना अल्पमात्र वर्णदुं बु. संदेपमात्र करीने ते गुणथानमा अग्यार प्रतिमाधारी प्रतिमाएवं नाम चारित्र विकल्पमुंबे॥रण॥ हवे अगीधार प्रतिमानां यथार्थनाम कहे:-अथ एकादश प्रतिमा नामकथनः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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