Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री समयसारनाटक.
३५५ हवे चुंघानुं लक्षण कदे:-अथ चुंघा यथाः॥ दोहराः॥-जे उदास व्है जगतसों, गहे परम रस पेम; सो चूंघा गुरुके बचन, चूंघे बालक जेम. ॥ ३७॥
अर्थः-जे जीव जगत्थी उदासी थई रहे, अने जे परम दशामांरही तेना प्रेम स्वादने ग्रहे बे, एटले उत्कृष्ट दशा नावे , तेतो गुरुनां वचनने बालकनी परे चुंघे जे, अने पुष्ट थाय , ते चुंघा कहेवाय . ॥ ३ ॥
हवे सुंघानुं लक्षण कहेजेः-अथ सुंघा यथाः॥ दोहराः ॥-जो सुवचन रुचिसों सुनै, हिए पुष्टता नांहि; परमारथ समु नही, सो सुंघा जगमांहि. ॥ ३० ॥
अर्थः-जे रुचिये करी आगमना अंग जे सुवचन तेने सांजले , जेना हृदयमां पुष्टता नथी, पण जे सूदम तत्त्वने समके नही तेने जगत्मां सुंघा पुरुष कहीये.॥३०॥
हवे जंघानुं लक्षण कहेजेः-अथ जंघा यथाः॥ दोहराः ॥-जाकों विकथा हित लगे, श्रागम अंग अनिष्ट; सो जंघा विषई वि कल, पुष्ट रिष्ट पापिष्ट. ॥ ३५॥
अर्थः-जेने विकथानां वचन हितकारी लागे , अने बागम अंग अनिष्ट लागे बे, तेतो विकल विषयी जीव जंघा कहेवाय, दोषवंत रोषवंत पापकर्मी थई रहे.
हवे चूंघानुं लक्षण कहेले.-अथ चूंघा यथाः॥ दोहाः ॥-जाके श्रवन बचन नही, नहि मन सुरति विराम; जमता सो जड वत नयो, चूंघा ताको नाम, ॥ ४० ॥ चोपाईः॥-डूंघा सिफ कहे सब कोऊ; सुंघा जंघा मूरख दोज; बूंघा घोर विकल संसारी; चुंघा जीव मोष अधिकारी. ॥४१॥ ॥ दोहराः ॥-चूंघा साधक मोषको, करे दोष फुःख नास; लहे पोष संतोष सों, व रनों लगन तास. ॥४२॥
अर्थः-जेने वचन नथी एटले जे एकेंजिय श्रने जेने श्रवण नथी एटले जेबेरिंजिय तेरिजिय, चौरिंजिय बे, अने जेने मननी सुरता नथी एटले जे असंज्ञी, वली जेने विराम के विरति नथी, अज्ञानरूप जमताथी जे जमरूप थई रह्या , तेने धुंघा क हीए. ॥ ४० ॥ सुघा पुरुषने तो सह कोई सिक कहे जे; सुंघा अने ऊंघा ए बने मूर्ख बे; अने बूंघा होय तेतो अघोर अंधारामां विकल संसारी जीव ; अने चुंधा जीव बे तेतो मोदना अधिकारी होय, अने मोदना वांडक होय ॥४१॥ चूंघा डे तेतो मोक्षनो साधक डे, दोष श्रने फुःखनो नाश करे , अने संतोषथी पुष्टता पामे , तेनुं लक्षण वरणवू लु.॥४२॥
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