Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. ॥इति श्री समयसार नाटक ग्रंथ अमृतचंद आचार्यकृत संपूर्णम् ॥ .
हवे बणारसीदास कहे:॥ दोहराः ॥-जाकी जगति प्रनावसों, कीनो ग्रंथ निवाहि; जिन प्रतिमा जिन सारषी, नमे बनारसी ताहि. ॥ ४ ॥
अर्थः-जेनी नक्तिना प्रनावे करीने गहनार्थ ग्रंथहतो तेनो निर्वाहकीधो, एवी श्राकालमां जिन प्रतिमा जे श्रीजिनेश्वर सरपी ने तेने बणारसीदास नमे. ॥ ४ ॥
हवे जेवा श्री जिनेश्वर देव महात्म्यवंत ने, तेवी जिन प्रतिमा पण महात्म्यवंत बे ते कहेजेः-अथ जिन प्रतिमा महात्म्य कथनः
॥सवैया इकतीसाः ॥-जाके मुख दरससों जगतके नैननिकों, थिरताकी बानी चढी चंचलता विनसी; मुजा देखे केवलीकी मुडा यादि आवे जहां, जाके आगे इंडकी विनूति दिसे तिनसी; जाको जस जपत प्रकास जगे हिरदेमे, सोई सुछ म ती होश हती जो मलिनसी; कहत बनारसी सुमहिमा प्रगट जाकी, सोहे जि नकी सबी हे विद्यमान जिनसी ॥ ५ ॥
अर्थः-श्री जिन प्रतिमाना मुख दर्शन थवाथी जे तेना नक्तजन ले तेना नयनने कंश आगल सम्यग् दशा के० संवर दशा पामेली होय तेनी स्थिरतानी वाणी वधे अने जे जावपदार्थमां चंचलता होय तेनो नाश थाय. श्रने पद्मासन स्थित मुजा श्राकार ज्यां देखे, त्यां केवलीनी मुना याद आवे जे; ते केवलीनी मुा एम संजार वामां आवे बे के, जेनी श्रागल इंजनी संपदा ते तृण समान देखायजे, एटले चो सठ इंश महिमाकरे, श्रने ते दशा सांजलवामां आवे त्यारे त्यां जे केवलीना जश कदेवाय, तेना गुणनो प्रकाश हैयामा जागेडे, अने त्यां जे पहेली मति सम्यग् द शामां मेली जेवी हती ते शुरू थई, तेथी वणारसीदास कदे के, जिन प्रतिमानो एवो प्रगट महिमा के के ते विद्यमानजिनेश्वर समानज मानवी ॥ ५ ॥ हवे जिनप्रतिमानो जेजक्तिवंत ने तेनुं वर्णन करे:-अथ प्रतिमा माने ताको वर्णनः
॥सवैया इकतीसाः॥-जाके जर अंतर सुदृष्टिकी लहरि लसी, विनसी मिथ्यात मोह निजाकी समारषी; सैली जिन सासनकी फली जाके घट जयो, गरवको त्यागी षट दरवको पारषी; श्रागमके श्रदर परे है जाके श्रवनमे, हिरदे नंमारमे समा नी बानी धारषी; कहत बनारसी अलप नव स्थिति जाकी, सोश जिन प्रतिमा प्रवाने जिन सारषी ॥ ६॥
अर्थः-जेना हैयामां सम्यग् दर्शननी लेहेर बिराजमान थई रही जे. अने मि थ्यात्व मोहनीय रूप निसानी मूर्ग ते विनास पामी , तथा जेना घटमांथी जिन शा
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