Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. हवे चोथा सम्यक्त्व गुणगणानुं वर्णन करे:-श्रथ सम्यक्त्व वर्णनः॥ सवैया इकतीसाः॥-केई जीव समकित पाश् अर्ध पुजल, परावर्त्त काल ताई चोखे होई चित्तके; कोई एक अंतर मुहूरतमें ग्रंथि नेदि, मारग उलंघि सुख वेदे मोष वितके; ताते अंतरमुहरतसों अर्ड पुजलसों, जेते समे होही तेते नेद समकितके; जाही समे जाको जब समकित होई सोई, तबहीसों गुन गहे दोष दहे इतके.॥ए॥
॥ दोहराः ॥-अथ अपूर्व श्रनवर्ति त्रिक, करन करे जो कोश; मिथ्या ग्रंथि वि दार गुन, प्रगटे समकित सोश. ॥ ए७ ॥
अर्थः-सम्यक्त्व पामीने चित्तनो चोखो थईने अर्क पुद्गल परावर्त काल लगण संसारमा रहेडे,अने कोईक जीव तो एकज अंतमुहर्त कालमां मिथ्यात्व ग्रंथी नेदी समक्त्व पामीने चारे गतिनो मार्ग उल्लंघन करी मोक्षरूप वित्तना सुख वेदे, पण सं सारमा रहे नही, तेश्री सम्यक्त्व पामीने जघन्य संसार स्थिति एक अंतर् मुहूर्त्तनी डे अने उत्कृष्ट संसार स्थिति के पुद्गल परावर्तनी थायडे, हवे एटली संसार स्थि तिनी वचमां एक एक समयनी वृद्धि करता जेटला ते स्थितिना नेद थाय तेटला सम्यक्त्वना नेद पामीए. ए रीते सम्यक्त्वना घणानेद पामिये; जे समये जेने सम्य क्त्व उदय होय ते समये ते जीव त्यारथी पोताना गुण ग्रहेजे; अने इतके के ते संसार श्रवस्थाना दोषy दहन करे॥ए॥ अथ के यथाप्रवृत्ति करण, अपूर्व करण, शनिवृत्ति करण ते त्रणे करण जे कोई जव्यजीव करे त्यां कोईक वखते एक, श्रा युकर्मविना साते कर्मनी स्थिति अंत कोडा कोमी सागरोपम प्रमाण रहे, त्यारे य थाप्रवृत्ति करण थाय. पली मिथ्यात्व ग्रंथी नेदवाथी अपर्वकरण थाय, अने सम्यक्त्व प्रगटवाथी अनिवृत्तिकरण थाय, जे कोई एत्रणे करणे करी मिथ्यात्व ग्रंथी विदारीने सम्यक्त्व स्वरूप पामे तेज सम्यक्त्व कहिये ॥ए ॥
हवे अष्ट प्रकारथी सम्यक्त्व विवरण करे बेः-श्रथ श्रष्टरूप कथनः॥ दोहराः॥-समकित उतपति चिन्ह गुन, नूषण दोष विनास; अतीचार जुत अष्ट विधि, बरनों बिबरन तास ॥ एए॥
अर्थः-सम्यक्त्व, सरूप, सम्यक्त्वनी उत्पत्ति, सम्यक्त्वनुं चिन्ह,३सम्यक्त्वनो गुण, ४ सम्यक्त्वनुं नूषण, ५ सम्यक्त्वना दोष, ६ सम्यक्त्वनो विनाश, सम्यक्त्वना अतिचार, ए सर्व आठ प्रकार थया, तेनो विवरो करूंबुं ॥ एए॥
हवे प्रथम सम्यक्त्वनुं सरूप कहे:-अथ सम्यक्त्व यथाः॥ चोपाईः॥-सत्य प्रतीति अवस्था जाकी; दिन दिन रीति गहे समताकी; बिन दिन करे सत्यको साको; समकित नाउ कहावे ताको ॥ ६०० ॥
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