Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ ४७ अथ क्षेत्र पाला पूजा # श्रीमजिनेन्द्र यज्ञ स्मिन्, क्षेत्राधिपतये मदा । बलिं ददामि सौग्व्याप्त्यै, दुष्ट विघ्न विनाशिने ।। १ ।। ॐ ह्रीं श्रीं क्रौं ज्य विजय अपराजित मानभद्र क्षेत्रपाला; अत्र अवर २ रसंवौषट् । अत्र विष्ठ २ ठः ठः । अवमम समिहिताः भ३ २ वषट् ॥ शुद्ध नाऽति सुगंधेन, स्वच्छेन पहुलेन च । स्नपनं क्षेत्र पालस्य; तैनेन प्रकरोम्यहं ॥ तैल मपनं ॥ सिन्दालणाकारैः पीतवर्णसु संभवः । चर्चनं क्षेत्र पालस्य, सिन्दूरेण करोम्यहं ॥ सिन्दगचनं ॥ सद्यः पूतैर्महा स्निग्धैः, सुष्ट मिष्ट सुपिरही, । ___ क्षेत्र पाल मुखे देयं, मोदकं दुःख हानये ॥ मोदक दण्यात् ।। तिल पिण्डस्य पिंडेन, माषादि बहुलेनच । ददामि क्षेत्र पालाय, विश्व विघ्नौष शांतये ।' तिल पिंडस्थापनं ॥ भो क्षेत्राला जिनमः प्रतिमांक माल, . दंष्ट्रा करावा जिन शासन रक्षपाल । तैलादि जन्म गुड चन्दन पुष धूपैः मोग प्रतिच्छ जगदीश्वर यज्ञ काले । अर्धम् ॥ २४७

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306