Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 295
________________ २६५॥ * हवन कुण्ड * उक्त छोटी वेदी के सामने एक हाथ जगह छोड़कर निम्न प्रकार तीन कुण्डों की रचना करनी चाहिये 1 " तीर्थंकर कुंड - मध्यभाग में एक अरनि चौड़ा एक रत्ती ऊँडा चतुष्कोण कुण्ड बनावे जिसे तीर्थंकर कुए कहते हैं कुंड की गहराई थी तो वेदी के मीटर ऊंडी हो एवं व्याधी की ऊपर तीन कटनी होवें । बद्ध मुष्टि करोरलि " मुट्टी बांधे हुवे एक हाथ को अरनि कहते हैं जो कि आधुनिक नाप के हिमाच करीब १० इंच होता है तदनुसार १८ इंच लम्बा चौड़ा एवं १८ इंच ऊँडा कूड बनाएं जिसमें से 8 इंच तो जमीन में ऊडा हो एवं इच में क्रम से || इंच, ३ इंच तथा २ इंच की ऊची व उतनी ही चौड़ी इस प्रकार ३ कटनी बनावे बड़े डों में भी मेखलाओं ( कटनियाँ ) की चौदाई ऊँचाई इस प्रकार प्रथम कटनी की ५ मात्रा द्वितीय मेखला की ४ मात्रा एवं तृतीय मेखला की ३ मात्रा के प्रमाण से इसकी अग्नि को गाईपत्य कहते हैं । सामान्य केली कुएड-कोर कुण्ड के उची नापका अर्थाच एक अरनि लम्बा एक सामान्य केरली कुण्ड कहते हैं इसकी तीनों अग्नि को आनीय कहते हैं । होना चाहिये । दाहिनी तरक चौडा व एक अरत्नि ऊँडा त्रिकोड कुंड बनाने इसे जाएँ एक एक अरत्नि लम्बी होवें । इसकी गणधर कुण्ड - चौकोर कुण्डों के उत्तर की ओर गोल कुएट बनावे जिसे गणधर कुंड ।।६६। A

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