Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 297
________________ - - - - - - - - - ॥ साकल्प ।। बदाम पिस्ता खच मजा वै नारि केलकः ।। ___ दुग्धे प्रचुर सपिंश्च शर्कर द्राक्षयान्विततम् । लघम कपू सुमिश्रितानां, चूर्ण सिलादि सुगंधजाः । युक्तं जिनेन्द्रस्य मते प्रसस्त, होमाईकं द्रव्य कदंब कंच ।। शादाम, पिता, छुहारा, जायफल, नारियल, दध, घी, दाख, लौंग, कार, इलायची, धूप, शर्कर, नैवेद्य आदि वस्तुओं का साइल्य कहते हैं साकन्य यजमान की शक्त्यानुसार और पी सब वस्तुओं से दुना होना चाहिऐ। हवन सामग्री में धान्य, जब, और तिल ये तीन वस्तुएं भी परम आवश्यक हैं । इनमें थोड़ा घा मिलाकर होमना चाहिये इसके अलावा खीर, मावा, लपती तथा और भी भक्ष्य पदार्थ एवं केले दाहिम, जामफल गना आदि पके. .ल भी टुकड़े करके साकल्य में मिलाये जाते हैं . ॥ होम के भेद ॥ होम तीन प्रकार से किया जाता है। जलहोम, बानुका दोम, कुण्डहोम । __ जल होम-धोये हुने शुद्ध चावलों के पुंज पर मिट्टी या ताम्बे का गोल कुण्डा जोकि उत्तम जल से भरा हो रखकर उसे चंदन, अवत, माला, सूत्र आदि से सुशोभित करे उस बल कुण्ड में सात धान्यों से दिक्पालों को तथा ३ धान्यों से नवग्रहों को आहुति देवे । अन्त में नारियल

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