Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 289
________________ २५ एण व्यो तेण जो पंच गुरु बंदए । गुरुय संसार पण वेल्लि सोदिये ।। बहर सो सिद्ध सुक्खाइ वर माणणं । कुणई कम्मि धणं पुज पज्जा लग ॥ ६॥ अरिहा सिद्धा इरिया । उवझाया साहु पंच परमेट्ठी ॥ एयाण मु काऐ । भवे भवे मम सुहं दितु ॥ ७ ॥ ___ॐ ह्रीं श्रहसिद्धा चार्यों मार सर्व सानु च गनिमोऽयं मा निर्वयामीति स्वाहा । इच्छामि भंते पंच गुरु भक्ति साम्रोसग्गों को तरसा लोचे श्रो __ अट्ठ महापाडि हेर संजुनामां अरहताणं । अट्ट गुण संपण्माणं उहढ लोयम्मि पद्रि पाणं सिद्धार्थ । अपर पण माऊ सं जुत्ताणं आज्ञरियाणं । प्रायारादि सुद गाणो व देप याणं उबझायाणं । तिर यण गुण पालड़ा रयाणं सच साहुखं । णिच्च कालं अच्चमि पुज्जेमि दामि णमस्सामि दुक्ख क्ख श्रो कम्मक्ख भो कोहि लाहो सुगइ मम समाहि मरण जिन गुरुए संपत्ति होउ मन्झ । ॥ इत्याशीर्वाद । पुष्पांजलि क्षिपेत् ॥

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