Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ २६ दुक्ख खत्रो कम्मरखो, समादि मरणं च बोहि लाहोय । मम होऊ जगत बघव, तब जिएयर चरण शरणेण ॥१३॥ - श्री ऋषभनाथ की आरती ॐ आज मेरे मन मंगल है, मैं तो भेट्या पभ जिनंद । परसत पाप पसाइये, प्रभु पूनों परमानन्द । आज मेरे म. ।। टेक ।। पिता धन्य नाभिनन्दजी, धन्य मरू देवी माताजी । नगरी अयोध्या धन्य भली, तहाँ जनम्या त्रिभुवनराया । आम मेरे म. ॥ १ ॥ समव शरण मध्य शोमता, प्रसुवार दिशामुख चार । प्रभु विश्वंभर जीव बोधिया है. तो जीव दया प्रतधार | आज मेरे म. ॥ २ ॥ दोष रहित गुण शोभता, प्रभु भतिशय के अधिकार । अष्ट मंगल छवि गोपुरा हॉजी मानस्थम विशाल । आजमेरे० ॥ ३ ॥ पंच कल्याणक सुरकरे प्रभु आप गये निवारण । हर्ष भयो त्रिभुवन में जय जयकार यखाण ॥ भाजमेरे ॥ ४ ॥ साटि चार को विनाद सुमातुं नेघ चटा गरजंत । निरत करे अति अपछरा: रूमजुम नाद ठम कत ॥ श्रान मेरे ॥ ५ ॥ २६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306