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दुक्ख खत्रो कम्मरखो, समादि मरणं च बोहि लाहोय ।
मम होऊ जगत बघव, तब जिएयर चरण शरणेण ॥१३॥
- श्री ऋषभनाथ की आरती ॐ आज मेरे मन मंगल है, मैं तो भेट्या पभ जिनंद । परसत पाप पसाइये, प्रभु पूनों परमानन्द । आज मेरे म. ।। टेक ।। पिता धन्य नाभिनन्दजी, धन्य मरू देवी माताजी । नगरी अयोध्या धन्य भली, तहाँ जनम्या त्रिभुवनराया । आम मेरे म. ॥ १ ॥ समव शरण मध्य शोमता, प्रसुवार दिशामुख चार । प्रभु विश्वंभर जीव बोधिया है. तो जीव दया प्रतधार | आज मेरे म. ॥ २ ॥ दोष रहित गुण शोभता, प्रभु भतिशय के अधिकार । अष्ट मंगल छवि गोपुरा हॉजी मानस्थम विशाल । आजमेरे० ॥ ३ ॥ पंच कल्याणक सुरकरे प्रभु आप गये निवारण । हर्ष भयो त्रिभुवन में जय जयकार यखाण ॥ भाजमेरे ॥ ४ ॥ साटि चार को विनाद सुमातुं नेघ चटा गरजंत । निरत करे अति अपछरा: रूमजुम नाद ठम कत ॥ श्रान मेरे ॥ ५ ॥
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