Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 288
________________ ॥२५Ek धरणराय पद्मावती राणी, पार्श्वनाथ केरी पक्षाणी । अमर कु० ॥ ७ ॥ सेवकनी संभाल जु करजो, तुष्ट थई ने माता कष्ट जु हरजो। भमर कु०॥८॥ अर्घ भरी करू आरती मनधरी प्रेम अपार भी जिनका चरणे नमि कर भारती मनहार ।। ॐ पंच परमेष्ठी की जयमाला * मणुय-ण।इन्द सुर धीरय उत्त तया, पंचक जाण सुक्खावली पत्ताया ॥ दसणं खाण झाणं अणंत चलं, तेजिणा दिंतु अम्हं वरं मंगलं ॥१॥ जेहिं झायरिंग वाणेहि अई थत्यं, जम्म अर मरण हाय रतयं दडपं ॥ जेहिं पतं सिपं सासयं ठसायं, ते महा दितु सिद्धा परं पाणयं ॥ २ ॥ पंच हाचार पंवग्गि संसाहया । बार संगाइ सुय जलाई अरगाहया ॥ मोक्ख लच्छी महंती महं ते सया । मरिणोदितु मोक्खं गया संगया ॥ ३ ॥ घोर संसार भी माडवी काणणे। तिख वियरालणह पाच पंचाणणे ॥ __णहमग्गाण जीवाण पह देसथा। वंदिमो ते उब ज्झाय अम्है सथा .. ४ ॥ उग्ग तब यरण करणेहि झीणं गया । धम्म वर झाणसुक के झाणं गया । णियभरं तबसिरी ये समा लिंगया। साह ओ ते महा मोक्ख यह मग्गया ॥५॥ २५८

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