Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 282
________________ ५२५ वं यं वायुवेग, प्रलए परिणतं ब्रह्मरूप वरूपं, खं खं खं खङ्ग हस्तं, त्रिभुवन निलयं काल रूपं प्रशस्तं । चं चं चं चंचलत्वं, चल चल चलितं चालितं भूतवृन्दं । ___ मं मं में माय रूपं प्रसामति सततं ........"" ॥ शं शं शं शंख हस्त, शशिकर धवल यक्ष सम्पूर्ण तेज । में मं में माय मायं कुन सकुल कुलं, मंत्र मूर्ति सु सत्यम् । घं भून जहां मिटविहित श्वा, गृह गुणहा लुलवं, अं चरीक्षं प्रणमति सततं """"॥ ५ ॥ खं खं खं खंग भेदं विषममृत करं, कालकीलान्धकारम् । क्ष्क्ष्क्ष क्षिप्रवेगं, दह दह दहनं नेत्र संदीप मानं । है हुँकार नाद, हरि हरि सहित एहि एहि प्रचंडं, ___ मं में में सिद्धनाथं प्रथमति .... ..... ॥ ६ ॥ सं सं सं सिद्ध योग, मकल गुण मयं देव देव प्रसन्न, यं यं यं यक्षनाथं हरि हर बाद चन्द्र सूर्याग्नि नेत्र । जंज जं जंख नादं, बस वरुण सुरा सिद्ध गंधर्व नागं, ___रूस रूद्र रूपं प्रणमति सततं ....."" !! ७ ॥ ॥२४२॥

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