Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 284
________________ SEX ॐ श्रओं को ही श्री पद्मावती देवी पत्र मम सन्निहिता भव २ वपट । अमल पद्म द्रहे समुद्भव कनक कुभ सुधारया । रिंद पाद समान शीतल कमल वासित वारया । नरवरा नृर खेचरा स्तुत विधन कोटि विनाशिनीम्, पूजयेत्पद्मावतीपद रिद्धि सिद्धि निवासिनीम् ॥ १ ॥ जलम् ॥ हेम कुंकुम मिश्रीतैः मलयाख्य भूधर संभवः, परम ताप निवार चंदन गंध गंधित दिइ.मुखैः ॥ नरवरा नृ. ॥ चन्दनम् ॥२॥ कुन्द हार तुपार सुन्दर गगन वारक संनिमी, __ सिन्धु फेन समान उज्ज्वल खंड वर्जित तंदुलैः । नरवरा ॥ अहतम् ॥ ३ ॥ पदम जाति मनोज्ञ चंपक्ष मालती मच कुन्दकैः, कनक फेतकी पारिजात सुगंध लुब्ध शिलीमुखैः । नरवरा. ॥ पुष्पम् ॥ ४ ॥ पायसान्न बरोदनादिक खज्ज मंडप घेवरैः; सूप तुप मनोज मोदक व्यंजनाय रसायकैः। नरबरा० ॥ नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ तिमिर पटल विकार वर्जित कोटि भानु प्रकाशने, घृत मणि मय कनक भामन प्रगट दीप सुज्योतिफैः । नरवरा० ॥ दीपम् ॥ ६॥ २५४।।

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