Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ ॥२५० सदामन कोमल केलि विशाल, सदासु........ || सुचित्रक कुंजर सागर पार, सुदुर्जन शोषण शत्रु संहार । सुपित किन्नर भूत रसाल, सदासु........ ॥ ६ ॥ सु वृद्धि समृद्धि सुदापक शूर, सुपुत्रक मित्र कलन सुपूर।। सुरंजित नागिनि कामिनि बाल, सदासु....... ॥ सुकेयूर कुण्डल हार सुशद, सुशेखर सुस्वर किंकिसी नाद । भयंकर मीषण वासुर काल, सदासु"....|| सुमन खेलत दिव्य शो, सुबाहन हासन मोहन धीर। सुमाषण रंजिव विश्व रसाल, सदासु......... ॥ ६ ॥ सुथापित निर्मल जैन मुजाक्य, निकंदित दुमति दुर्मति वाक्य । प्रकाशित शासन जैन रसाल, सदाम............ १०॥ सुभाषित श्रेय सुभब्य सुहेस, महोदय जैन सरोवर वंश । महा सुख सागर केलि विशाल, सदाम........... असम सुरद सारं तीक्ष्ण दंष्ट्रा करालं, सब्ल सुकृत जटिलं, जिह का दीर्घ करालं । ।।२५०

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306