Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
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सदामन कोमल केलि विशाल, सदासु........ || सुचित्रक कुंजर सागर पार, सुदुर्जन शोषण शत्रु संहार ।
सुपित किन्नर भूत रसाल, सदासु........ ॥ ६ ॥ सु वृद्धि समृद्धि सुदापक शूर, सुपुत्रक मित्र कलन सुपूर।।
सुरंजित नागिनि कामिनि बाल, सदासु....... ॥ सुकेयूर कुण्डल हार सुशद, सुशेखर सुस्वर किंकिसी नाद ।
भयंकर मीषण वासुर काल, सदासु"....|| सुमन खेलत दिव्य शो, सुबाहन हासन मोहन धीर।
सुमाषण रंजिव विश्व रसाल, सदासु......... ॥ ६ ॥ सुथापित निर्मल जैन मुजाक्य, निकंदित दुमति दुर्मति वाक्य ।
प्रकाशित शासन जैन रसाल, सदाम............ १०॥ सुभाषित श्रेय सुभब्य सुहेस, महोदय जैन सरोवर वंश ।
महा सुख सागर केलि विशाल, सदाम........... असम सुरद सारं तीक्ष्ण दंष्ट्रा करालं,
सब्ल सुकृत जटिलं, जिह का दीर्घ करालं ।
।।२५०

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