Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 11
________________ आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. २. कलम आदि कलम-कलम बनाने के लिए अनेक प्रकार के 'बरू' (एक प्रकार की घास या पेड-पौधे, जिनके डण्ठल को छीलकर लिखने योग्य कलम बनाते थे ।) आदि प्रयुक्त होते थे और आज भी होते हैं । यथा तजियां बरू, कळां बरू, बाँस के बरू आदि । इनमें तजियां बरू तज-पत्र की तरह पोला होने के कारण 'तजियां' नाम से जाना जाता है । यह स्वभाव से बरड़ (तुरन्त टूट जानेवाला) होता है, तथापि इसमें एक गुण यह है कि इससे कितना भी लिखें तो भी इसकी नौक खराब नहीं होती है । इस अपेक्षा से कळां बरू दूसरे स्थान पर गिना जाता है । बाँस का बरू भी अच्छा माना जा सकता है । लेखिनी के गुण-दोष विषयक निम्नोक्त दोहा प्रचलित है : 'माथे ग्रंथी मत (मति) हरे, बीच ग्रंथि धन खाय; चार तसुनी लेखणे, लखनारो कट जाय ।' ॥१॥ 'आद्यग्रन्थिहरेदायुः, मध्यग्रन्थिहरेद् धनम् । अन्त्यग्रन्थिहरेत् सौख्यं, निर्ग्रन्थिलैंखिनी शुभा ॥१॥' पीछी (पंख)-इसका उपयोग पुस्तक संशोधन हेतु किया जाता है । यथा 'ष' का 'प', 'ब' का 'व', 'म' का 'न' करना हो, किसी अक्षर अथवा पंक्ति को हटाना हो अथवा एक अक्षर के स्थान पर दूसरा अक्षर लिखना हो तब 'हरिताल' अथवा 'सफेदा' को उस स्थान पर लगाकर दूसरा अक्षर बन जाता है। वैसे तो आजकल अनेक प्रकार की-महीन, मोटी, छोटी, बड़ी आदि आवश्यकतानुरूप पीछी मिल सकती हैं, अतः उन - सब का विस्तृत परिचय देने की आवश्यकता नहीं है । तथापि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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