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प्राचीन लेखनकला और उसके साधन
योग्य बन जाता है । पाटण संघ के भण्डार में, अथवा जो वखतजी की शेरी में भण्डार है उसमें 'संवत् १३५३ भाद्रवा सुदि १५ रवौ उपकेश गच्छीय पं० महिचन्द्रेण लिखिता पु० ' ऐसा अन्तिम उल्लेख (पुष्पिका) वाली कपड़े पर लिखी हुई एक पुस्तक (हस्तप्रत ) है । कपड़े का उपयोग पुस्तक लिखने के बजाय मंत्र - विद्या आदि के पट लिखने, चित्रित करने हेतु अधिक किया जाता था और आज भी किया जाता है । आज इसका स्थान ट्रेसिंग क्लोथ ने ले लिया है ।
भोजपत्र - इसका उपयोग प्रधानतया मन्त्रादि लिखने हेतु किया जाता था और आज भी किया जाता है । 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला में भोजपत्र पर लिखी हुई पुस्तकों (हस्तप्रतों) का भी उल्लेख किया गया है ।
कई विद्यमान पुस्तक भण्डारों की तरफ दृष्टिपात करने पर इतना तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि पुस्तक लेखन हेतु ताड़पत्र तथा कागज का जितना अधिक उपयोग किया गया है उतना किसी दूसरी वस्तु का नहीं किया गया है । इसमें भी विक्रम की बारहवीं शताब्दी पर्यन्त तो पुस्तक लेखन हेतु ताड़पत्रों का ही प्रयोग हुआ है ।
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