Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 24
________________ प्राचीन लेखनकला और उसके साधन मारवाड़ के लेखक मुख्यतया 'व' पर विशेष आधार रखते हैं । अर्थात् लिखते-लिखते किसी काम के लिए उठना हो अथवा लेखनकार्य बन्द करना हो तो 'व' आने पर उठते हैं । अथवा किसी कागज में 'व' लिखकर उठते हैं । ताड़पत्रों पर लिखे जानेवाले अङ्क २ : भिन्न-भिन्न देशीय ताड़पत्रीय पुस्तकों, शिलालेखों आदि में प्रयुक्त अङ्कों की संपूर्ण माहिती, उनकी आकृति (संरचना) आदि 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला' में दी गई है । अतः संपूर्ण परिचय चाहनेवाले वाचकों को इस पुस्तक का अवलोकन करना चाहिए । यहाँ मात्र सामान्य परिचय देने की खातिर जेसलमेर, पाटण, खंभात, भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट पूना आदि में विद्यमान ताड़पत्रीय पुस्तकों में प्राप्त होनेवाले कुछ अङ्को का उल्लेख निम्नोक्त है: એમ અંકો १- १,,,,,श्री.थी २ = ३, न, सि, सि, श्री,श्री ३८ ३,मः, श्री, श्री थी. ४- कक, झ, का,,को,क, का, क, का, का. ५- ह.ई ., ,,न, ना, काही,वाशी. ६. फर्फ.फा,फोक,,का,फ्रो,फ,ऊ,अर्धा.R. ७% पर्य,या,यों - काई,शा,,v. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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