Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 27
________________ २२ आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. मिश्रण होने के कारण वर्षा ऋतु में पृष्ठ चिपक जाने का भय रहता है, अतः वर्षा ऋतु में पुस्तकों को सीलन (भेज) तथा हवा-पानी से बचाकर सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए । इसी लिए हस्तलिखित पुस्तकों को मजबूत बाँधकर कागज, चमड़ा अथवा लकड़ी के खोल में रखकर कबाट या मंजूषा (पेटी) में सुरक्षित रखा जाता है । अतः विशेष प्रयोजन के बिना वर्षा ऋतु में वर्षात नहीं हो रही हो तब भी लिखित पुस्तक-भण्डारों को खोला नहीं जाता है। जो पुस्तक बाहर रखी हो उसके खास उपयोगी भाग के अलावा शेष पुस्तक को पैक करके सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है । किसी पुस्तक की स्याही में गोंद की मात्रा आवश्यक प्रमाण से अधिक हो तो ऐसी पुस्तक को बाहर निकालने पर उसके पृष्ठों के चिपकने का भय लगता हो तो उसके पन्नों पर गुलाल छाँट दें (डाल दें) जिससे पन्ने चिपकने का भय कम हो जायेगा । चिपकी हुई पुस्तक-वर्षाऋतु में यदि किसी कारणवश पुस्तक को नमीयुक्त हवा लगने के कारण उसके पन्ने चिपक गये हों तो उस पुस्तक को पानी के मटके रखनेवाले स्थान पर जहाँ हवा लगती रहे अथवा पानी भरने के बाद खाली की हुई मटकी अथवा घड़े में रख दें। कुछ समय बाद उस पुस्तक को हवा लगने के बाद एक-एक पन्ने को फूंक मारकर धीरे-धीरे उखाड़ते जायें । यदि पुस्तक अधिक चिपक गई हो तो उसे कई बार नमी वाले स्थान में रखें, परन्तु पन्नों को अलग करने में जल्दी न करें । यह उपाय कागज की पुस्तक हेतु उपयोगी है । यदि ताड़पत्रीय पुस्तक चिपक गई हो तो एक कपड़े को पानी में भिगोकर उसे पुस्तक के आस-पास लपेटें । जैसे-जैसे पन्ने शीलन (नमी, हवामान) वाले होते जायें वैसे-वैसे उखाड़ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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