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आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म.
ज्ञानपञ्चमी - श्वेताम्बर जैन समाज में कार्तिक शुक्ल पञ्चमी को ज्ञानपञ्चमी के नाम से जाना जाता है । इस तिथि का माहात्म्य प्रत्येक शुक्ल पञ्चमी से अधिक माना जाता है । इसका प्रमुख कारण यही है कि वर्षाऋतु के कारण पुस्तक - भण्डारों में प्रविष्ट नमीयुक्त हवा पुस्तकों को हानि न पहुँचाए इस हेतु उन पुस्तकों को धूप दिखाना चाहिए, जिससे भेज (नमी) नष्ट हो जाये और पुस्तकें अपने स्वरूप में विद्यमान रहें । वर्षाऋतु में पुस्तक - भण्डारों को दरवाजा बन्द करके रखने के कारण दीमक आदि लगने की संभावना भी धूल- कचरा आदि साफ होने पर दूर हो जाती है । यह महान् कार्य हमेशा एक ही व्यक्ति की देख-रेख में होना चाहिए जिससे किसी प्रकार की हानि न हो ।
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अतः कुशल जैनाचार्यों ने दरेक व्यक्ति को ज्ञानभक्ति का रहस्य और उससे होनेवाले लाभों का बोध कराकर इस ओर आकर्षित करने का प्रयत्न किया है । उस दिन लोग स्वकीय गृहकार्य अथवा व्यापार-धन्धों को छोड़कर यथाशक्य आहारादि का नियम लेकर पोषधव्रत स्वीकार कर पुस्तकरक्षा के महान् पुण्यकार्य में भागीदार बनते हैं ।
वर्षा के कारण पुस्तकों एवं पुस्तक भण्डारों में आई हुई भेज को दूर करने हेतु सबसे सरस, अनुकूल और श्रेष्ठ समय कार्तिक मास ही है : इसमें शरदऋतु की प्रौढ़ावस्था, सूर्य की प्रखर किरणें तथा वर्षाऋतु की भेजयुक्त हवा का अभाव होता है
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जिस उद्देश्य से उक्त तिथि का माहात्म्य वर्णित किया गया था उसे आज भुला दिया गया है । अतः पुस्तक भण्डारों की देख-रेख करना, साफ-सफाई करना आदि लुप्तप्रायः हो गया है । मात्र इसके स्थान पर आजकल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों की बस्तीवाले
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