Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 28
________________ प्राचीन लेखनकला और उसके साधन २३ रहें । ताड़पत्रीय पुस्तक की स्याही पक्की होने के कारण उसके आस-पास भीगा हुआ कपड़ा लपेटने पर उसके अक्षर खराब होने का भय नहीं रहता है । ताड़पत्रीय पन्नों को अलग करते समय उनके परत न उखडें इस बात का विशेष ध्यान रखें । ___ पुस्तक का किन-किन चीजों से रक्षण करें इस हेतु कुछ लहियाओं ने पुस्तकों के अन्त में भिन्न-भिन्न श्लोक लिखे हैं जो थोडे बहुत शुद्धाशुद्ध होने के बावजूद खास उपयोगी हैं, अतः उनका उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ : जले रक्षेत् स्थले रक्षेत्, रक्षेत् शिथिलबन्धनात् । मूर्खहस्ते न दातव्या, एवं वदति पुस्तिका ॥१॥ अग्ने रक्षेज्जलाद् रक्षेत्, मूषकाच्च विशेषतः । कष्टेन लिखितं शास्त्रं, यत्नेन परिपालयेत् ॥१॥ उदकानिलचौरेभ्यो, मूषकेभ्यो हुताशनात् । कष्टेन लिखितं शास्त्रं, यत्नेन परिपालयेत् ॥१॥ भग्नपृष्ठिकटिग्रीवा, वक्रदृष्टिरधोमुखम् । कष्टेन लिखितं शास्त्रं, यत्नेन परिपालयेत् ॥१॥ इनके अलावा कई लेखकों ने अपनी निर्दोषता व्यक्त करने हेतु भी श्लोक लिखे हैं : श्रदृष्टदोषान्मतिविभ्रमाद्वा, यदर्थहीनं लिखितं मयाऽत्र । तन्मार्जयित्वा परिशोधनीय, कोपं न कुर्यात् खलु लेखकस्य ॥१॥ यादृशं पुस्तकं दृष्टं, तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा, मम दोषो न दीयते ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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