Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 26
________________ प्राचीन लेखनकला और उसके साधन तक लिखना हो तो दहाई संख्या में बताए अनुसार एक, दो, तीन लिखें और सौ, दो सौ, तीन सौ आदि शतक संख्या में एक, दो, तीन आदि लिखना हो तो शतक अंकों में लिखे हुए एक, दो, तीन आदि लिखें । इकाई, दहाई में शून्य आये तो वहाँ शून्य ही लिखते हैं । दहाई संख्या के बाद आनेवाली इकाई संख्या और शतक संख्या के बाद आनेवाली दहाई तथा इकाई संख्या में एक, दो, तीन लिखना हो तो इकाई, दहाई अंकों में से लिखते हैं । आज जो ताड़पत्रीय पुस्तक-भण्डार विद्यमान हैं उनमें, मेरे ध्यान में है जहाँ तक, छ:सौ पृष्ठ (पेज) नम्बर तक वाली पुस्तकें उपलब्ध हैं; इससे अधिक पृष्ठ वाली पुस्तक एक भी उपलब्ध नहीं है । अधिकतर पुस्तकें तीन सौ पेज तक अथवा कुछ पुस्तकें इससे अधिक पृष्ठवाली मिल सकती हैं । किन्तु पाँचसौ से अधिक पृष्ठवाली पुस्तक मात्र पाटण स्थित संघवी का पाडा के ताड़पत्रीय पुस्तक भण्डार में एक ही देखी है; जो त्रुटित और अस्तव्यस्त हो गई है । छ:सौ से अधिक पृष्ठवाले ताडपत्रीय ग्रन्थ को सुरक्षित रखना अति कठिन काम है, यह स्वाभाविक ही है, अर्थात् इससे अधिक पृष्ठ का ग्रन्थ नहीं लिखा जाता हो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । तथापि लगभग चारसौ वर्ष पुराने एक पत्र में ताड़पत्रीय अंकों का लिखित उल्लेख मिला है, जिसमें सातसौ पृष्ठ संख्या तक का अङ्कन किया गया है । अतः उस व्यक्ति ने सातसौ पृष्ठ अथवा इससे अधिक पृष्ठ संख्यावाला ग्रन्थ देखा हो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । पुस्तकरक्षण-हस्तलिखित पुस्तकों की स्याही में गोंद का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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