Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. દશક અંકો १ = लु, ले. २ = घ, घा. ३ - ल, ला. ४= त, तं, ता,तो. ५- C, G6,६,२. Le aamsan શતક અંકો १ - स, से २ = सू, स्त्र,प्त. ३- स्ना, सा, सा. ४- पस्ता,स्साशा. ५- स्त्रो, लो,मो. ६. स्तं, सं, सं. 3- स्त्रः, सः,मः . 6%9,5356. ए- 8,8,3,8 जिस प्रकार आज के समय में प्रचलित अङ्क एक लाइन में लिखे जाते हैं वैसे ताड़पत्रीय सांकेतिक अंक एक लाइन में नहीं लिखे जाते, बल्कि ऊपर-नीचे लिखने का विधान है, यथा १४४ सु १ ____ ४ पर्क ४ यहाँ इकाई, दहाई, सैकडा अंकों में १, २, ३ आदि संख्याओं का पृथक्-पृथक् उल्लेख करने का प्रमुख कारण सिर्फ इतना है कि-एक, दो, तीन आदि इकाई संख्याएँ लिखनी हों तो इकाई अंकों में दिए गए एक, दो, तीन आदि लिखें । दसे, बीस, तीस आदि दहाई संख्या में एक, दो, तीन इस प्रकार नौ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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