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प्राचीन लेखनकला और उसके साधन इतना ज्ञान जरूरी है कि हमारे पुस्तक संशोधन कार्य में गिलहरी की पूँछ के बालों को कबूतर की पँख के आगेवाले भाग में पिरोकर बनाई गई पीछी अधिक सहायक सिद्ध होती है । क्योंकि ये बाल कुदरती रूप से ही इतने व्यवस्थित होते हैं कि इन्हें अलग से व्यवस्थित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और अचानक सड़ते अथवा टूटते भी नहीं हैं । इन बालों को कबूतर की पाँख में पिरोकर देखने पर संपूर्ण विधि प्रत्यक्षरूपेण समझ में आ जाती है।
जुजबल-कलम द्वारा लाइन बनाने पर थोड़ी ही देर में कलम घिस जाती है, अतः लाइन खींचने हेतु जुजबल का प्रयोग किया जाता था । आज भी मारवाड़ में कई स्थानों पर इसका चलन है । यह लोहे का होता है और इसका आकार आगे से चिमटे के समान होता है ।
ब्रह्मदेश, मद्रास आदि जिन-जिन प्रदेशों में ताड़पत्र को गोदकर, कुतरकर लिखने का रिवाज है, वहाँ कलम के स्थान पर लोहे के नुकीले सुई सदृश तार, सरिया का उपयोग किया जाता है।
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