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आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. मिश्री का पानी डालकर साफ करने की विधि उपरोक्तानुसार ही समझें । ___ध्यान रहे कि खरल (ओखल) अच्छी श्रेणी का होना चाहिए । किसी वस्तु को घोंटते वखत यदि खरल घिसता हो तो उसमें से छोटी-छोटी कंकरीट स्याही में मिल जाने पर स्याही दूषित हो जायेगी।
हिंगळोक (हिंगोलक, ईंगुर) कच्चा हिंगळोक, जो गांगडा (ढेला, डली) सदृश होता है जिसमें से वैद्य लोग पारा निकालते हैं । इसे ओखल में डालकर मिश्री का पानी मिलाकर खूब घोंटें । फिर उसके ठण्डा होने पर उस पर जमा हुए पीले रंग के पानी को अलग कर दें । पुन: उसमें मिश्री का पानी डालकर खूब घोंटें और ठण्डा होने के बाद ऊपर आए हुए पीले रंग के पानी को पूर्ववत् अलग कर दें । इस प्रकार जब तक पीले रंग का अंश दिखाई दे तब तक करते रहें। ध्यान रहे कि ऐसा दो-चार बार करने से ही नहीं हो जाता है बल्कि बीस-पच्चीस बार इस प्रकार हिंगोलक हो धोने पर शुद्ध-लाल सुर्ख सदृश हिंगोलक (हिंगळोक) हो जाता है और यदि अधिक मात्र में हो तो और भी अधिक बार धुलना पडता है । उस शुद्ध हिंगोलक (हिंगळोक) में मिश्री का पानी तथा गोंद का पानी डालें और घोंटते रहें । इस बार इतना ध्यान अवश्य रखें कि गोंद की मात्रा अधिक न हो । इस हेतु बीच-बीच में ध्यानपूर्वक परीक्षण करते रहें, अर्थात् एक कागज पर अंगुलि की सहायता से उस हिंगोलक की दो-चार बूंद डालकर उस कागज को हवावाले स्थान पर (पानी का मटका रखनेवाले स्थान पर अथवा हवा-भेज, नमी वाले घडे में) मोड़कर रख दें। यदि वह कागज चिपके नहीं तो गोंद की मात्रा अधिक नहीं है ऐसा समझें और नाखून द्वारा कुरेदने पर आसानी
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