Book Title: Prachin Lekhankala aur Uske Sadhan
Author(s): Punyavijay, Uttamsinh
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 19
________________ १४ आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. मिश्री का पानी डालकर साफ करने की विधि उपरोक्तानुसार ही समझें । ___ध्यान रहे कि खरल (ओखल) अच्छी श्रेणी का होना चाहिए । किसी वस्तु को घोंटते वखत यदि खरल घिसता हो तो उसमें से छोटी-छोटी कंकरीट स्याही में मिल जाने पर स्याही दूषित हो जायेगी। हिंगळोक (हिंगोलक, ईंगुर) कच्चा हिंगळोक, जो गांगडा (ढेला, डली) सदृश होता है जिसमें से वैद्य लोग पारा निकालते हैं । इसे ओखल में डालकर मिश्री का पानी मिलाकर खूब घोंटें । फिर उसके ठण्डा होने पर उस पर जमा हुए पीले रंग के पानी को अलग कर दें । पुन: उसमें मिश्री का पानी डालकर खूब घोंटें और ठण्डा होने के बाद ऊपर आए हुए पीले रंग के पानी को पूर्ववत् अलग कर दें । इस प्रकार जब तक पीले रंग का अंश दिखाई दे तब तक करते रहें। ध्यान रहे कि ऐसा दो-चार बार करने से ही नहीं हो जाता है बल्कि बीस-पच्चीस बार इस प्रकार हिंगोलक हो धोने पर शुद्ध-लाल सुर्ख सदृश हिंगोलक (हिंगळोक) हो जाता है और यदि अधिक मात्र में हो तो और भी अधिक बार धुलना पडता है । उस शुद्ध हिंगोलक (हिंगळोक) में मिश्री का पानी तथा गोंद का पानी डालें और घोंटते रहें । इस बार इतना ध्यान अवश्य रखें कि गोंद की मात्रा अधिक न हो । इस हेतु बीच-बीच में ध्यानपूर्वक परीक्षण करते रहें, अर्थात् एक कागज पर अंगुलि की सहायता से उस हिंगोलक की दो-चार बूंद डालकर उस कागज को हवावाले स्थान पर (पानी का मटका रखनेवाले स्थान पर अथवा हवा-भेज, नमी वाले घडे में) मोड़कर रख दें। यदि वह कागज चिपके नहीं तो गोंद की मात्रा अधिक नहीं है ऐसा समझें और नाखून द्वारा कुरेदने पर आसानी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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