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आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म. करके, भिगोकर खूब घोंटें, और जब तक पानी सूखे नहीं तब तक घोंटते रहें । (फिर उसकी टिक्की बनाकर सुखा लें; आदि उपरोक्तानुसार जानें ।) ४." तृतीय प्रकार :
निर्यासात् पिचुमन्दजाद् द्विगुणितो बोलस्ततः कज्जलं संजातं तिलतैलतो हुतवहे तीव्र तपे मर्दितम् । पात्रे शूल्वमये तथा शन (?) जलैलाक्षारसैर्भाषितः सद्भल्लातकभृङ्गराजरसयुक् संयुक्त सोऽयं मषी ॥१॥
"नीम के “निर्यासात्" अर्थात् गूदा अथवा गौंद से दुगुना बीजाबोल लें । उससे दुगुना तिल के तेल से बनाया हुआ काजल लें । (इन सब को) ताँबे के पात्र में डालकर तीव्र अग्नि पर चढ़ाकर उसमें धीरे-धीरे लाक्षारस डालें और तांबे की परत चढ़े हुए घोंटा द्वारा घोंटते रहें । फिर गौमूत्र में भिगोकर रखे हुए भीलामा के गर्भ (गूदा) को घोंटा के नीचे लगाकर स्याही को घोंटें । उसमें भांगरे का रस भी मिलाएँ । इस प्रकार (ताड़पत्र पर लिखने योग्य) मषी-स्याही तैयार हो जाती है।
___ ध्यान रहे कि इसमें लाक्षारस मिश्रित होता है अतः काजल को गौमूत्र में भिगोएँ नहीं । अन्यथा लाक्षारस के फटने पर स्याही खराब हो जायेगी ।
ब्रह्मदेश, मद्रास आदि जिन-जिन देशों में ताड़पत्रों को कुरेदकर (गोदकर) लिखने का रिवाज है वहाँ स्याही के स्थान पर नारियल के ऊपर की परत अथवा बादाम के छिलकों को जलाकर उनकी राख को तेल में मिलाकर उपयोग में लिया जाता है । अर्थात् कुरेदकर (गोदकर) लिखे हुए ताड़पत्रों पर
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