Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 10 Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 5
________________ ॥ वीतरागायनमः ॥ सुविहिताचार्य-चैत्यवासी और क्रिया उद्धारक सान्तिम भगवान् महावीर के पश्चात् गणधर - सौधर्माचार्य, जम्बू आचार्य,प्रभवाचार्य, सय्यंभवाचार्य, संभूति विजय, यशोभद्र और भद्रबाहु आचार्य तक तो सब के सब सुविहिताचार्य हुए और इनका विहार-क्षेत्र प्रायः पूर्व भारत ही रहा। तथा आचार्य केशीश्रमण जो प्रभु पार्श्वनाथ के संतानियों के नाम से प्रसिद्ध थे, उनके संतान प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि, रत्नप्रभसूरि, यक्षदेवसूरि, कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि, सिद्धसूरि आदि सुविहिताचार्य थे। इनका विहार क्षेत्र पश्चिम भारत एवं राजपूताना तथा विशेष कर मरुधर आदि जंगल प्रदेश था, और इन्होंने उक्त प्रदेशों के पतित क्षत्रियादिकों की शुद्धि कर उन्हें नये जैन बनाया, जिससे कि जैनियों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गई। पूर्वभारत में आचार्य भद्रबाहु के समय महा भयंकर दुष्काल पड़ा, वह भी निरन्तर बारह वर्ष का । अतः आचार्य भद्रबाहु ने जब वहाँ साधुओं का निर्वाह होता नहीं देखा तो, अपने ५०० शिष्यों ( साधुओं ) को साथ लेकर नैपाल आदि । प्रान्तों में विहार कर दिया। और शेष रहे हुए साधुओं ने ज्यों..Page Navigation
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