Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 10
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 28
________________ ( २८ ) कैसी कीमती शासन की सेवा करते ? खैर सङ्घ ने जिन लोगों पर शासन सेवा का भार रख उनके बहकावट में आकर श्री पूज्यों के अस्तित्व को तो नष्ट कर दिया, पर अब वे क्रिया उद्धारकों की सन्तानें क्या कर रही हैं उनको तो जरा देखें । ( १ ) कई सूरीश्वर तो अपने नाम के साथ विशेषणों की सृष्टि रचने में लग रहे हैं। वे विशेषण भी सामान्य नहीं किन्तु जो पहले कभी तीर्थङ्कर गणधरों को भी नहीं लगे थे उन्हें अपने नाम के साथ जोड़ रहे हैं । ( २ ) कई अपनी नामवरी के लिए समाज को जरूरत न होने पर भी पत्थर कुटाने में तथा मन्दिर बनवाने में समाज के लाखों रुपयों का व्यय कर बेचारी अल्प संख्यक एवं प्रायः निर्धन कौम पर भविष्य में बड़ा भारी असह्य टैक्स लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं। ( ३ ) कई लोग अपनी जीवितावस्था में ही बड़े-बड़े मूल्य वाली मूर्त्तिएँ बनवा के उनको पुजाने की धुन में मस्त हैं । क्योंकि उनको विश्वास है कि हमने जैन जाति को डुबाने के अलावा कोई भी अच्छा काम नहीं किया है इस हालत में हमारे बाद हमारी मूत्तिएँ बनवा के वे पूजेंगे या नहीं ? इससे बहतर अच्छा है कि हम हमारे हाथों से ही मूर्त्तिएँ बनवा कर स्थापन करवा उनकी पूजा अपनी आँखों से देखलें । पर उनको यह ख़बर नहीं है कि पिछले लोग ऐसी २ मूर्त्तियों को उठा कर खारे समुद्र में फेंक देंगे । ( ४ ) कई महात्मा कल्प सूत्र से आठ गुना अपना जीवन चरित्र लिखवाने में अनेकों पंडितों को पास में बिठला कर मूंठी सच्ची बातों की पूर्ति कर रहे हैं ।

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